आज पृथ्वी दिवस है, अर्थात पृथ्वी के प्रति सम्मान दिखाने का दिवस ! पृथ्वी जो हमारी माँ है, जिसने हमें जीवन दिया है, जो हमारा पोषण करती है, जो हमें सुख देती है. इस अनंत ब्रह्मांड में जहाँ जीवन को खिलने का अवसर मिलता है, उस धरती का हम कितना ही गुणगान करें, कम है. वह पृथ्वी आज घायल है, अपशिष्ट पदार्थों का एक बड़ा भंडार उस पर बोझ बन गया है, वह हर कूड़े को खाद बना देती है पर उसे समय तो मिले. मानव कचरे का ढेर दिन-रात बढ़ाता ही जा रहा है, जल में रसायनों और प्लास्टिक डालता ही जा रहा है. मानव जब अपनी करनी से बाज नहीं आ रहा था तब शायद प्रकृति ने ही कोरोना के रूप में एक विपदा भेजी है. आज जब हम घरों में बैठे हैं, पृथ्वी अपने को स्वच्छ कर रही है अर्थात पृथ्वी अपना दिवस स्वयं ही मना रही है. वेदों में पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कितने ही मन्त्र गाये गए हैं. आज आवश्यकता है उन्हें फिर से दोहराने की, जिससे हमारा यह सुंदर ग्रह फिर से अपनी खोयी हुई शांति और सुंदरता को प्राप्त कर सके. हरे-भरे जंगल, उनमें विचरते हुए निःशंक प्राणी और प्रकृति का संरक्षण करता हुआ मानव समाज फिर से अस्तित्त्व में आ सके.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3680 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार !
Deleteसार्थक और सारगर्भित सुविचार।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteधरा दिवस की बधाई हो।
सुप्रभात...आपका दिन मंगलमय हो।
स्वागत व आभार !
Deleteबहुत ही सुंदर आदरणीया दी
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया लिखा आपने ...
ReplyDeleteस्वागत व आभार सदा जी !
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