सन्त और शास्त्र कहते हैं मानव जन्म दुर्लभ है. मानव यदि इस बात पर यकीन करता तो अपने जीवन से खिलवाड़ न करता. आज के हालात में देखा जाये तो जो लोग अनुशासन का पालन नहीं कर रहे हैं, अपने जीवन से खिलवाड़ ही कर रहे हैं. आज काल अपना मुख खोले जीवन को ग्रसने के लिए तैयार खड़ा है, जरा सी असावधानी से कोई स्वयं को एक ऐसे रोग से ग्रस्त कर सकता है जिसका कोई इलाज अभी तक ईजाद नहीं हुआ है. यहाँ मेरा तात्पर्य मात्र कोरोना से भी नहीं है, एक और रोग है जिससे मानव ग्रसित है, यह रोग है प्रमाद, जिसका कोई इलाज डॉक्टरों के पास नहीं है, इसका इलाज तो हमें स्वयं ही करना है. प्रमाद का सबसे बड़ा प्रमाण है कि हमें अपने जीवन का मोल नहीं पता, क्या होता यदि हम मानव देह में न होकर किसी अन्य योनि में जन्मते, अथवा तो अभी तक लाखों आत्माओं की तरह देह पाने के लिए प्रतीक्षारत ही रहे होते. मानव देह पाकर इसका मोल समझने का अर्थ है कि हम स्वयं के वास्तविक स्वरूप से परिचित होने की तरफ सजग हों, किसी अन्य योनि में यह सम्भव ही नहीं है. वशिष्ठ मुनि से इसी का ज्ञान पाकर राम, राम हो पाते हैं, अष्टावक्र से ज्ञान पाकर जनक विदेह बनते हैं.
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21 -4 -2020 ) को " भारत की पहचान " (चर्चा अंक-3678) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteबहुत सार्थक विचार
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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