जनवरी २००९
संत बालवत
होते हैं, वे जैसे कभी बड़े हुए ही नहीं, और हम हैं कि छोटा होना ही नहीं जानते !
अध्यात्म मार्ग पर अहंकार को मिटाना ही परम लक्ष्य है. परम के प्रति प्रेम हो तो
यह सहज ही हो जाता है. शरणागति में गये बिना यह कठिन है. कर्म तथा ज्ञान इसे पुष्ट
करते हैं, भक्ति इसे पिघला देती है. भक्ति स्वयं में साधन है और साध्य भी वही है. इस
अमृत स्वरूपा भक्ति को अपने भीतर पाना ही है, परम सत्य के प्रति प्रेम ही भक्ति
है, तत्व के प्रति श्रद्धा ही भक्ति है. वह अस्तित्त्व अकारण करुणामय है, वह सुहृद
है, वह हमें हर क्षण प्रेम से निहारता है. वह प्रेम का ऐसा स्रोत है जो कभी नहीं
चुकता !