अक्तूबर २००८
तन स्वस्थ
रहे तो मन स्वस्थ रहता है और मन स्वस्थ रहे तो तन स्वस्थ रहता है पर आत्मा स्वस्थ
रहे तो दोनों स्वस्थ रहते हैं. इसलिए आत्मा को ही स्वस्थ रखना परम लक्ष्य होना
चाहिए. सरवर में जैसे कमल रहता है वैसे ही आत्मा तन में रह सकती है. कर्ता का भाव
छूटना ही वह समझ है जो भीतर क्रांति ला सकती है. वही अहंकार है. हमारी जीवन धारा
इसी के कारण मटमैली हो जाती है. जैसे जगत में सब कुछ हो रहा है, तन व मन अपने
स्वभाव के अनुसार बरत रहे हैं, आत्मा साक्षी मात्र है यह अनुभव ही आत्मा को स्वस्थ
रखता है.
आज सब तन को स्वस्थ रखने को तो ध्यान देते हैं लेकिन आत्मा को स्वस्थ रखना भूल जाते हैं. अहम् में ग्रसित व्यक्ति आत्मा के अस्तित्व को भूलता जा रहा है..बहुत प्रभावी चिंतन
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तति का लिंक 02-04-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1936 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
कैलाश जी व दिलबाग जी, स्वागत व आभार !
ReplyDeleteसार्थक लेखन
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