जनवरी २००९
हम असत्य
में ही जन्मते हैं, असत्य में ही जीते हैं और असत्य में ही मर जाते हैं. कामना
हमारे जन्म का कारण है, वासना हमारे जीते चले जाने का कारण है और वासना ही हमारी
मृत्यु का कारण है. असत्य हमारे स्वभाव में इस तरह घुलमिल गया है कि उसका भास तक
हमें नहीं होता. इस मामले में हम बड़े वीर बन गये हैं. समय बीतता जा रहा है और हम
व्यर्थ के कामों में लगे रहते हैं. श्वासें घट रही हैं, मृत्यु सिर पर नाच रही है
और हम अब भी नहीं चेते. यह देह जो एक दिन आग की भेंट चढ़ जाने वाली है उसे तो रोज
हम नहलाते-धुलाते हैं, और हम जो स्वयं बच जाने वाले हैं उसकी कोई फ़िक्र नहीं.
पाँचों इन्द्रियों के घाट पर हम रहते आये हैं और वहीं रहने का इरादा कर लिया है.
जिव्हा अपनी ओर खींचती है, कान मधुर सुनने को आतुर हैं. इन पर तो चलो नियन्त्रण कर
भी लें, मन जो मनमानी करता है उसका क्या, बुद्धि जो मन के पीछे दौड़-दौड़ कर अपना
अपमान करने से भी बाज नहीं आती. हजार बार ठोकर खाने के बाद भी हम सचेत नहीं होते.
आखिर एक दिन तो जगना ही होगा.
" मरने से यह जग डरे मेरो मन आनन्द ।
ReplyDeleteकब मरिहौं कब भेटिहौं पूरन परमानन्द ॥"
कबीर
स्वागत व आभार, शकुंतला जी !
Deleteक्या बरखा जब कृषि सुखाने।
ReplyDeleteआपने बिलकुल सही कहा है..आभार !
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