Friday, April 3, 2015

एक ही मौसम रहता है तब

दिसम्बर २००८ 
एक साधक के जीवन में दो ही ऋतुएं होती हैं, एक जब वह ईश्वर या गुरू से निकटता का अनुभव करता है और दूसरी वह जब उनसे दूरी का अनुभव करता है. लेकिन ईश्वर की कृपा इतनी असीम है कि वह साधक को दूसरी ऋतु में देखना नहीं चाहती. वह पुनः उसी निकटता का अनुभव कराना चाहती है जिसे पाकर भीतर प्रेम की लहर दौड़ जाती है, परम शांति का अनुभव होता है. भीतर कृपा का सागर लहरा रहा है. खुदा का अर्थ ही है वह जो खुद आये, हमें केवल उसका इंतजार करना है पूरे मन के साथ. जब मन पूरी तरह ठहर जाता है, तब ही कालातीत से परिचय होता है. 

4 comments:

  1. बिलकुल सच कहा है...जब मन केवल उस में ही लग जाता है तो कभी न कभी वह अवश्य सुनेगा अपने भक्त की पुकार...

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  2. देवेन्द्र जी व कैलाश जी, स्वागत व आभार !

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  3. सच कहा है साधक सधना और प्रभु

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