दिसम्बर २००८
एक साधक
के जीवन में दो ही ऋतुएं होती हैं, एक जब वह ईश्वर या गुरू से निकटता का अनुभव
करता है और दूसरी वह जब उनसे दूरी का अनुभव करता है. लेकिन ईश्वर की कृपा इतनी
असीम है कि वह साधक को दूसरी ऋतु में देखना नहीं चाहती. वह पुनः उसी निकटता का
अनुभव कराना चाहती है जिसे पाकर भीतर प्रेम की लहर दौड़ जाती है, परम शांति का
अनुभव होता है. भीतर कृपा का सागर लहरा रहा है. खुदा का अर्थ ही है वह जो खुद आये,
हमें केवल उसका इंतजार करना है पूरे मन के साथ. जब मन पूरी तरह ठहर जाता है, तब ही
कालातीत से परिचय होता है.
आनन्द दायक।
ReplyDeleteबिलकुल सच कहा है...जब मन केवल उस में ही लग जाता है तो कभी न कभी वह अवश्य सुनेगा अपने भक्त की पुकार...
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी व कैलाश जी, स्वागत व आभार !
ReplyDeleteसच कहा है साधक सधना और प्रभु
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