३१ अक्तूबर २०१७
दुनिया में हम ऐसे रहते हैं जैसे
सदा के लिए रहना हो. जीवन क्षण भंगुर है इस बात को बार-बार अनुभव करने के बाद भी
मन संसार को पकड़ कर रखना चाहता है. मन कटु बातों को पकड़ लेता है, स्मृतियों के जाल
में फंस जाता है या फिर भविष्य के बारे में सोचकर व्यर्थ ही आशंकाओं के बादल में
घिर जाता है. इस संसार को स्वप्न की भांति देखने की समझ आने लगे, दूसरों के दृष्टिकोण को
देखने की क्षमता विकसित हो अथवा हरेक में उसी अन्तर्यामी के प्रकाश को देखने की दृष्टि
मिलने लग और सबसे जरूरी बात अपनी त्रुटियों को स्वीकारने की हिम्मत भीतर सदा रहे.
इन सब उपायों से मानसिक ऊर्जा का ह्रास नहीं होता तथा मन कमल पत्तों पर पड़ी ओस की
बूंदों की नांई शांत रहता है. हर सुबह यदि कोई इस बात को स्मरण रखे कि आज का दिन भी
हजारों दिनों की तरह खो जाने वाला है तो व्यर्थ उसी क्षण गिर जायेगा. जीवन जब जिस
पल में जैसा मिलेगा, उसे वैसा ही स्वीकार करना आ जायेगा. खाली मन में ही शांति की
झलक मिलती है और शांति में ही सुख है, नव सृजन है.