Tuesday, October 10, 2017

जग में रहे साक्षी बन जो

१० अक्तूबर २०१७ 
अपेक्षा में जीने वाला मन दुःख को निमन्त्रण देता ही रहता है. लाओत्से ने कहा है कि कोई मुझे हरा ही नहीं सका, कोई मेरा शत्रु भी न बना, कोई मुझे दुःख भी न दे सका क्योंकि मैंने न जीत की, न मित्रता की न सुख की अपेक्षा ही संसार से की. जो भी चाहा वह भीतर से ही और भीतर अनंत प्रेम छिपा है. परमात्मा ने किसी को इस जगत में खाली हाथ नहीं भेजा है. हम यदि उसके हैं और वह भरा हुआ है तो हमें किस बात की कमी हो सकती है. हम जिस शांति और ख़ुशी की तलाश बाहर कर रहे हैं, यदि उसी की तलाश भीतर करें तो वह मौजूद ही है. वास्तव में हमें वस्तुओं, व्यक्तियों और घटनाओं का साक्षी होना सीखना है, उनसे जुड़ना अथवा उनके द्वारा कुछ पाने की इच्छा करना ही दुःख को निमन्त्रण देना है.

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