२६ अक्तूबर २०१७
परमात्मा की कृपा का अनुभव करना
जिसने सीख लिया, उसका सारा जीवन एक उपहार बन जाता है. हवा, धूप, जल पृथ्वी और आकाश
के प्रति उसके हृदय में आदर और सम्मान का भाव उमगता है, वह इन्हें दूषित करने की
बात तो सोच ही नहीं सकता. हमारे वैदिक ग्रन्थों में प्रकृति के लिए जो प्रार्थनाएं
और स्तुतियाँ हैं, वह ऐसे ही ऋषियों ने गायीं हैं. विज्ञान ने मानव जीवन को
सुख-सुविधाओं से तो सम्पन्न किया है पर उसके मन के कोमल भावों को जैसे चुरा लिया
है. अब चाँद को देखकर शहरी नागरिक का मन उल्लसित नहीं होता, सूर्य को जल चढ़ाने की
बात पर वह हँसता है. मन को पल्लवित और प्रफ्फुलित होने के लिए प्रकृति का आश्रय
लेना ही होगा, यह उसी से बना है. छठ पूजा सूर्य के प्रति मानव मन की श्रद्धा का
जीवंत उदाहरण है.
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