Sunday, October 23, 2022
एकै साधै सब सधै
Wednesday, October 19, 2022
जगमग दीप जले
जब भीतर-बाहर, घर, द्वार, बाज़ार, दफ़्तर सभी जगह स्वच्छता का आयोजन सहज ही होने लगता है तब मानना चाहिए कि दिवाली आने वाली है।दीपावली का पर्व अनेक अर्थों को अपने भीतर धारण किए हुए है। यह राम से संयुक्त है तो कृष्ण से भी, इसमें यम की कथा भी आती है और धन्वन्तरि की भी। दिवाली लक्ष्मी से जुड़ी है तो काली से भी। जीवन में राम का आगमन हो तो अज्ञान का अंधकार दूर हो जाता है और ज्ञान, हर मार्ग को प्रकाशित करता हुआ आगे ले जाता है। इस आनंद को अकेले नहीं सबके साथ मिलकर अनुभव करना है, इसलिए इसमें एक-दूसरे को मिष्ठान व उपहार वितरित करते हैं। गोवर्धन पूजा का संदेश है प्रकृति का आराधन। माटी का एक छोटा सा जलता हुआ दीपक दूर से आकर्षित कर लेता है, फिर आज के दिन तो लाखों दीपक जलाए जाते हैं। मानव तन भी माटी से बना है, जिसमें चेतना की बाती जल रही है, जो स्नेह से प्रदीप्त रहती है। भीतर चैतन्य का दीपक जलता हो तो अंतर में उल्लास कम नहीं होता और सहज ही सब ओर बहने लगता है। सृष्टि में प्रकृति के साथ आदान-प्रदान आरम्भ हो जाता है।
Sunday, October 16, 2022
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:
संत कहते हैं, इस जगत के और हमारे भी केंद्र में जो होना चाहिए, वह ईश्वर है. असल में वह जगह तो भगवान की है; किंतु आज उसकी जगह को अहंकार ने घेरा हुआ है. मुल्कों के अहंकार ने, शासकों के अहंकार ने। अहंकर केवल सेवक है, पर मानव भूल गया है कि वह ईश्वर की सत्ता के कारण अपना काम कर रहा है. मानव इस मूलभूत तथ्य को भूल गया है और मनमानी करता है; तब उसे लगता है कि जगत सुंदर नहीं है, जगत में कितने अत्याचार हो रहे हैं. जबकि मानव ने स्वयं प्रकृति को स्वयं कितना नुक़सान पहुँचाया है. कुछ लोग यह सोच कर कि इस कष्ट का अंत कभी नहीं होगा; जीवन से भाग जाते हैं, आत्महत्या तक कर लेते हैं। वे जगत को सुंदर बनाने का कोई प्रयत्न नहीं करते. जो सत्य के पथ पर चलेगा उसका कल्याण होगा, उसे ही सौंदर्य की अनुभूति होगी। सत्यं शिवं सुंदरं के इस छोटे से सूत्र में यह संदेश चिरकाल से मानव को दिया गया है। विध्वंस तब होता है जब मानव कुछ और करना नहीं चाहता तब भगवान के पास कोई विकल्प नहीं रहता. युद्ध कोई समाधान नहीं है, यह मानव की अंतिम मंज़िल नहीं हो सकती, इसके बाद शांति और मेल-मिलाप की सारी यात्रा पुनः करनी होगी। हमें अहिंसा को पुनः परम धर्म के रूप में स्थापित करना है। लक्ष्य यदि सम्मुख हो तो हमें राह मिलने लगती है। धरती को मानव ने दूषित किया है अब उसे ही सुधारना है। आज भारत के ज्ञान के प्रभाव से विश्व में परिवर्तन हो रहा है, अब ईश्वर के बताये मार्ग पर अनेक लोग चलने को उत्सुक हैं. वह दिन दूर नहीं जब भारत की बात सुनी जाएगी और सतयुग का सब जगह दर्शन होगा।
Wednesday, October 12, 2022
ऐसी वाणी बोलिए
दिव्यता कण-कण में है चाहे वह जड़ हो या चेतन। उस दिव्यता को हम पहचानें और आत्मसात् करें। एक बार निर्णय हो जाए तो उसी पथ पर चलें। एक मार्ग हो, उसे पकड़ कर राही को चलते जाना है। माना जंगल भी हैं सुंदर, पर दृष्टि को नहीं भटकाना है। नहीं कोई बाधा बन रोके, नहीं कोई जीवन को बहने से टोके । हमारी वाणी के दोष हमें अपनी मंज़िल पर जाने से रोकते हैं। वाणी शुद्द्ध हो, कल्याणकारी हो, रूक्ष ना हो, दोहरे अर्थों वाली न हो।उसमें लोच हो पर स्थिरता भी हो। वाणी में मिठास हो, दूसरों के दोष देखने वाली ना हो। व्याकरण का नियम विचलित न होता हो, भाषा की त्रुटि न हो। उसमें दिखावा न हो, पाखंड न हो, सत्य की अन्वेषी हो। व्यर्थ के कार्यों में न लगती हो। अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हो। ईश्वर का हाथ पकड़कर चलना है, इसका पूरा विश्वास हो। देह, मन, बुद्धि सभी दिव्य बनें।
Monday, October 3, 2022
विजयदशमी की शुभकामनाएँ
दशहरा अर्थात दशानन का मरण, या दस सिर वाले असुर का विनाश। देवता और असुर दोनों ही कहाँ रहते हैं ? हमारे ही मन में उनका निवास है, क्योंकि जो ब्रह्मांड में है, वही पिंड में है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, माया, मद, मत्सर, दर्प, ईर्ष्या तथा अहंकार रूपी रावण के दस सिरों को भगवती दुर्गा की प्रार्थना के बाद ग्रहण की गयी शक्ति के कारण राम रूपी आत्मा नष्ट करती है। मन जब हनुमान की तरह समर्पित होता है और ध्यान लक्ष्मण की तरह सेवा में तत्पर होता है, तब सीता रूपी बुद्धि को उपरोक्त दस विकारों की क़ैद से मुक्ति प्राप्त होती है। भारत भूमि पर मनाए जाने वाले हर उत्सव का एकमात्र उद्देश्य आत्मा को शक्तिशाली बनाना है ताकि वह प्रकृति के पार जा सके और अपनी दिव्यता को अनुभव करे।