Wednesday, October 12, 2022

ऐसी वाणी बोलिए

दिव्यता कण-कण में है  चाहे वह जड़ हो या चेतन। उस दिव्यता को हम पहचानें और आत्मसात् करें। एक बार निर्णय हो जाए तो उसी पथ पर चलें। एक मार्ग हो, उसे पकड़ कर राही को चलते जाना है। माना जंगल भी हैं सुंदर, पर दृष्टि को नहीं भटकाना है। नहीं कोई बाधा बन रोके, नहीं कोई जीवन को बहने से टोके । हमारी वाणी के दोष हमें अपनी मंज़िल पर जाने से रोकते हैं। वाणी शुद्द्ध हो, कल्याणकारी हो, रूक्ष ना हो, दोहरे अर्थों वाली न हो।उसमें लोच हो पर स्थिरता भी हो। वाणी में मिठास हो, दूसरों के दोष देखने वाली ना हो। व्याकरण का नियम विचलित न होता हो, भाषा की त्रुटि न हो। उसमें दिखावा न हो, पाखंड न हो, सत्य की अन्वेषी हो। व्यर्थ के कार्यों में न लगती हो। अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हो। ईश्वर का हाथ पकड़कर चलना है, इसका पूरा विश्वास हो। देह, मन, बुद्धि सभी दिव्य बनें। 


8 comments:

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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  3. वाह वाह! सुंदर प्रस्तुति।

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    1. स्वागत व आभार ओंकार जी!

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  4. बहुत बहुत आभार रवींद्र जी!

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  5. सच कहा आपने बहुत सुंदर दी।

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    1. स्वागत व आभार अनीता जी !

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