जब भीतर-बाहर, घर, द्वार, बाज़ार, दफ़्तर सभी जगह स्वच्छता का आयोजन सहज ही होने लगता है तब मानना चाहिए कि दिवाली आने वाली है।दीपावली का पर्व अनेक अर्थों को अपने भीतर धारण किए हुए है। यह राम से संयुक्त है तो कृष्ण से भी, इसमें यम की कथा भी आती है और धन्वन्तरि की भी। दिवाली लक्ष्मी से जुड़ी है तो काली से भी। जीवन में राम का आगमन हो तो अज्ञान का अंधकार दूर हो जाता है और ज्ञान, हर मार्ग को प्रकाशित करता हुआ आगे ले जाता है। इस आनंद को अकेले नहीं सबके साथ मिलकर अनुभव करना है, इसलिए इसमें एक-दूसरे को मिष्ठान व उपहार वितरित करते हैं। गोवर्धन पूजा का संदेश है प्रकृति का आराधन। माटी का एक छोटा सा जलता हुआ दीपक दूर से आकर्षित कर लेता है, फिर आज के दिन तो लाखों दीपक जलाए जाते हैं। मानव तन भी माटी से बना है, जिसमें चेतना की बाती जल रही है, जो स्नेह से प्रदीप्त रहती है। भीतर चैतन्य का दीपक जलता हो तो अंतर में उल्लास कम नहीं होता और सहज ही सब ओर बहने लगता है। सृष्टि में प्रकृति के साथ आदान-प्रदान आरम्भ हो जाता है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (22-10-2022) को "आ रही दीपावली" (चर्चा अंक-4588) पर भी होगी।
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कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !
Deleteवाह वाह, बहुत सुंदर और सामयिक प्रस्तुति आदरणीया 👍👍
ReplyDeleteस्वागत व आभार विवेक जी!
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना आपको और आपके परिवार को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteआपको भी दीपोत्सव की बहुत बहुत बधाई!
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