इस जगत में जड़ पदार्थ और चेतना के पीछे कोई एक तत्त्व छुपा हुआ है, जिसने स्वयं को इन दो भागों में बाँट लिया है. जड़ पदार्थ में वह सत्ता रूप में स्थित है, मानव से इतर प्राणियों और वनस्पति में सत्ता व चेतना के रूप में और मानव में सत्ता, चेतना व आनंद के रूप में. भौतिक जगत में रहते हुए हम अनेक वस्तुओं को देखते हैं, किन्तु उनके भीतर एकत्व का अनुभव नहीं कर पाते. अध्यात्म का अर्थ है इस विभिन्नता के पीछे उस एक्य को देख लेना। उस समरसता और एकता का बीज सभी के भीतर है, किंतु केवल मानव के भीतर वह सामर्थ्य है कि उसे पहचाने और अपने अहैतुक प्रेम, आनंद और शांति के रूप में बाहर व्यक्त करे। अध्यात्म से जुड़े व्यक्ति के लिए कर्म का अर्थ केवल अपना सुख प्राप्त करना नहीं है, उसके कर्म सारे जगत के कल्याण की भावना से भरे होते हैं। उसके मन की मूल भावना स्वार्थ से ऊपर उठ जाती है। ऐसे में वह स्वयं तो अपना कल्याण करता ही है, सहज ही जगत के प्रति मैत्री भाव से भर जाता है।
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