Sunday, August 30, 2020

मन तू ज्योतिस्वरूप है अपना मूल पहचान

 जैसे एक असत्य को छिपाने के लिए किसी को हजार असत्यों का सहारा लेना पड़ता है, पर एक न एक दिन वह झूठ पकड़ा ही जाता है.  मानव स्वयं को झूठमूठ ही देह मानता है फिर इसके इर्दगिर्द सुरक्षा के कितने प्रबन्ध करता है, पर एक न एक दिन आत्मा का  पंछी उड़ जाता है. मृत्यु के बाद ही उसे सत्य का भास होता है कि वह देह नहीं था, झूठ पकड़ा जाता है पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. जैसे मकड़ी स्वयं ही जाल बुनती है और कभी-कभी स्वयं ही उसमें फंस जाती है, मन उन घटनाओं का सृजन करता है जो अभी घटी ही नहीं. कंप जाता है सोच-सोचकर ही. हवामहल बनाता है जिनका अस्तित्त्व ही नहीं, मन अपने ही विचारों के जाल में उलझ जाता है. जिसे चिकित्सक अवसाद कहते हैं. मन यदि जान ले वह मात्र उपकरण है प्रकृति का बनाया हुआ और जब उसकी जरूरत है उसे काम में लेना है, तो व्यर्थ की भाग-दौड़ से बच जायेगा. उहापोह और उधेड़बुन तब कहानियों में लिख शब्द ही रह जायेंगे. मन यदि जान ले कि वह वरदान की ऊर्जा पर पलता  है, आत्मा की ऊर्जा से ही वह पल में मीलों तक चलता है तो कभी-कभी शुक्रिया कहने हेतु हाथ तो जोड़ेगा. आँख तो उठाएगा उस ओर और उस क्षण भर के विश्राम में ही उसे प्रेम और आनंद के स्रोत की झलक मिलेगी, जो उसका मूल है.    


Friday, August 28, 2020

मध्य में टिकना जो भी जाने

 ज्ञानीजन कहते हैं, सदा वर्तमान में रहो. अतीत जा चुका और भविष्य अभी आया नहीं है, फिर क्यों अपनी ऊर्जा को  उन बातों को याद करने में गंवाए जो हमारे वर्तमान जीवन को सुंदर बनाने में जरा भी काम नहीं आ सकतीं. अतीत से हमें सीख अवश्य लेनी है और वह हमारा मन उसी वक्त ग्रहण कर लेता है जब वह घटना विशेष घटी थी. इस समय का एक-एक पल हमारे भविष्य को गढ़ने वाला है और यही हमारे हाथ में है. विपासना ध्यान में जब हम श्वास को देखते हैं तो जाती हुई श्वास अतीत बन गयी, अगली अभी आयी नहीं है उस मध्य काल में यही कोई पल भर के लिए भी टिक जाता है तो उसकी बाहर जाने वाली श्वास सहज और शांत हो जाती है. ऐसे ही आज का दिन बीत गया, मध्य में रात्रि है यदि वह पूर्ण विश्राम देती है तो अगले दिन हम प्रफ्फुलित रह सकते हैं. इसी तरह वार्तालाप में यदि एक व्यक्ति ने अपनी बात कह दी और हम पल भर के लिए रुक गए तो उसका जवाब सही और स्थिरता के साथ दे पाएंगे. यदि हम उसकी बात में ही अटक गए या पहले ही अपना जवाब तय कर लिया तो हमारा उत्तर सन्तुलित नहीं हो सकता. भगवान बुद्ध का मध्यम मार्ग भी यही सिखाता है कि हमें मध्य में ठहरने की कला सीखनी है. 


Wednesday, August 26, 2020

स्वस्थ रहेगा तन, मन जिसका

 भूमि की गहराई में जल, तेल तथा अन्य बहुमूल्य पदार्थ छिपा होता है, जिसे गहरी खुदाई करके निकाला जाता है, वैसे ही शरीर की गहराई में आत्मा की अनंत शक्ति छिपी है जिसे उजागर करने पर स्वास्थ्य सहज ही मिलता है. कमरे की  खिडकियों पर यदि भारी पर्दे लगे हों तो कमरे में प्रकाश मद्धिम सा ही दीख पड़ता है वैसे ही यदि मन पर प्रमाद छा जाये तो आत्मा की शक्ति ढक जाती है व तन अस्वस्थ हो जाता है. किसी संस्थान को सुचारू रूप से चलाने के लिये अनुशासन बहुत जरूरी है वैसे ही शरीर रूपी संस्थान ठीक रहे इसके लिये सोने, जागने, व्यायाम, भोजन का अनुशासन बहुत जरूरी है. कार के भीतर ड्राइवर स्टीयरिंग पर से कंट्रोल छोड़ दे तो दुर्घटना होगी ही वैसे ही तन रूपी रथ की सारथी बुद्धि, मन रूपी घोड़े को खुला छोड़ दे, भोजन, नींद, व्यायाम में संयम, तथा सही मात्रा व सही समय का ध्यान न रखे तो हम स्वस्थ कैसे रह सकते हैं. प्रकृति में एक गति है, लय है, रात-दिन तथा ऋतु परिवर्तन उसी लय के अनुसार होते हैं वैसे ही तन, श्वास तथा मन में भी एक लय है जिसके बिगड़ने पर रोग हो सकते हैं. शरीर के भीतर स्वयं को स्वस्थ रखने का पूरा प्रबंध है बस उसे हमारा सहयोग चाहिए. जरूरत से ज्यादा उसे थकाएं भी नहीं और आराम भी न दें. नम वातावरण में, गीले मौसम में ठंडी चीजें नुकसान करती हैं, इनसे दूर ही रहें. हम रेल यात्रा करने जाएँ तो हमारी सीट, कूपा तथा सहयात्री सभी पहले से तय होते हैं वैसे ही जीवन यात्रा में हमें जहाँ-जहाँ जो मिलेगा वह पूर्व निर्धारित है, हम रेल यात्रा को सुखद बनाना जानते हैं, वैसे ही सही दृष्टिकोण रखकर हम जीवन यात्रा को सुखद बना सकते हैं.


Tuesday, August 25, 2020

मुक्ति का जो स्वाद चखेगा

 मुक्ति कौन नहीं चाहता ? मुक्ति पुरानी आदतों से, व्यर्थ के खोखले विश्वासों तथा पूर्वाग्रहों से ! मुक्ति की कल्पना ही मन को पंख लगा देती है. मुक्त हृदय कितना शांत हो सकता है, कितना पवित्र और कितना सामर्थ्यवान. उसमें सब कुछ करने की शक्ति आ जाती है, बंधन मुक्त को दुःख कहाँ? लेकिन सारी सीमाएं, दायरे, बंधन और गुलामी की जंजीरें क्या हमारी खुद की ईजाद की हुई नहीं हैं? आदर्श से आदर्श स्थिति में भी हम अपने हृदय को नीचे गिरा लेते हैं. दुःख की कल्पनाएँ, भविष्य के प्रति आशंका, साथ ही द्वेष, कटुता और इन सबसे बचे भी रहे तो दूसरों को सुधारने का लोभ...यही सब मन को नीचे गिराता है. हम अन्यों से तो अपेक्षाएँ करते हैं पर स्वयं उनकी अपेक्षाओं पर खरे उतरे या नहीं, इसका ध्यान नहीं रखते. इस सुंदर जगत की सुंदरता को नकार कर केवल कमियों पर नजर डालना कहाँ तक उचित है. संसार में रहते हुए भी यदि मन को मुक्त रखना आ जाये तो अंतर्मन से रस का स्रोत कभी सूखेगा नहीं.


Thursday, August 20, 2020

ध्यान का फूल खिले जीवन में

 ध्यान हमें सिखाता है कि मन व्यर्थ के संकल्प-विकल्प करके अपनी ऊर्जा न गंवाए. नकारात्मक विचारों का दुष्प्रभाव शरीर और मन दोनों पर ही होता है जो बाद में रोग का रूप ले सकता है. ध्यान में हम मन के साथ अपने तादात्म्य को तोड़ते हैं और उसे निर्देशित करने में संभव होते हैं. इससे हम अपने विचारों के प्रति सजग हो जाते हैं और मन में स्पष्टता का अनुभव होता है. ध्यान के बाद एकाग्रता बढ़ जाती है जिसका अच्छा प्रभाव हमारे सभी कार्यों पर पड़ता है. ध्यान हमारे शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक व आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बढ़ाता है. देह को स्वस्थ रखने के लिए जैसे व्यायाम आवश्यक है वैसे ही मन को स्वस्थ रखने के लिए मन का पूर्ण विश्राम आवश्यक है, जो ध्यान में ही मिल सकता है.

Wednesday, August 19, 2020

जब आवे सन्तोष धन

 जीवन एक रहस्य है. अरबों-खरबों नक्षत्र और सृष्टि का अनंत विस्तरित रूप इसे रहस्यमय बनाता है. प्रकृति का स्रोत क्या है, कैसे एक नन्हा सा बीज विशाल बरगद का वृक्ष बन जाता है, कैसे ऋतु आने पर अपने आप ही धरती में दबे हुए हजारों बीज अंकुरित हो जाते हैं. बुद्धि से इसे समझना बहुत कठिन है. मन में हजारों संकल्प उठते हैं, इनका क्या स्रोत है. विचार उठकर कहाँ खो जाते हैं. इस क्षण इस पृथ्वी पर अरबों मनों में विचार उठ रहे होंगे, इस अनन्त ऊर्जा का स्रोत भी एक रहस्य है. मन में इच्छा जगती है और हम उसके अनुसार कर्म करते हैं, यदि यह इच्छा स्वयं को जानने की इच्छा बन जाये तो सम्भवतः अपने स्रोत का अनुभव मन कर सकता है. ध्यान में यही होता है. यदि कोई जीवन भर जगत की ही इच्छा करता रहे तो उसे जगत ही मिलेगा, यदि परमात्मा की इच्छा जगे तो जीवन में उस रहस्यमय का पदार्पण होगा. सन्तुष्टि का इसलिए इतना महत्व है, जब मन बाहर से सन्तुष्ट हो जाये तभी तो वह भीतर की और मुड़ेगा. 


Tuesday, August 18, 2020

स्व के भाव को जानेगा जो


योग और अध्यात्म का आश्रय लेकर ही हम देह और मन को स्वस्थ व प्रसन्न  रख सकते हैं. योग का अर्थ है जुड़ना, स्वंय  का इस सम्पूर्ण अस्तित्त्व के साथ जुड़ाव ही योग है. पतंजलि के अष्टांग योग की साधना के द्वारा इसे अनुभव किया जा सकता है, किन्तु ‘स्वयं’ का सही परिचय हमें अध्यात्म से प्राप्त होता है. शरीर, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार का अध्ययन करके अपने स्व को पहचानना ही अध्यात्म है. देह एक निश्चित आयु पूर्ण करके मिट्टी में मिल जाने वाली है. मन अधूरी कामनाओं को लेकर एक नए शरीर में प्रवेश करने वाला है, किन्तु स्व अथवा निजता को जिसने जान लिया वह जन्म और मृत्यु के इस चक्र से बाहर हो जाता है. वह होश में मरता है और होश में ही नयी देह धारण करता है, ऐसे ही मानव जन्म से संत अथवा सिद्ध होते हैं. शास्त्र और संत कहते हैं मृत्यु से पहले जिसने अपने आपको जान लिया, उसने उस कार्य को सिद्ध कर लिया जिसके लिए उसे मानव देह मिली थी.  


Sunday, August 16, 2020

जीवन चलने का नाम

 जीवन प्रतिपल बदल रहा है. यहाँ जो स्थित है वह पर्वत भी रेत बनने की प्रक्रिया से गुजर रहा है आज नहीं कल वह भी बिखरेगा और आज जहाँ पहाड़ों की हरी-भरी घाटियाँ हैं लाखों वर्ष बाद ही सही, वहाँ मरुथल नजर आ सकते हैं. हम कहने को कहते हैं कि सेटल हो गए हैं पर यह मात्र शब्द ही है. जीवन किसी को कभी भी सेटल होने का अवसर नहीं देता, या तो आगे या पीछे उसे चलना ही होता है. जिंदादिल कहते हैं जीवन निरन्तर आगे बढ़ने और सीखने का नाम है. वहीं निराशावादी कहते हैं जीवन एक संघर्ष है, पीड़ा है, अन्याय है, वे हार कर बैठ जाते हैं, पर मिटते वह भी जाते हैं. जिनके लिए जीवन एक चुनौती है, वह हर कदम पर उसके पीछे छिपी आनंद लहर में भीगने का राज सीख लेते हैं. वह स्वयं को विकसित करते हैं, उनके लिए आकाश ही सीमा है. यहाँ ज्ञान भी अनंत है और उसे प्राप्त करने की क्षमता भी असीम है. परमात्मा अपनी माया से इस जगत की सृष्टि निरन्तर करता है, आज भी वैज्ञानिक नयी-नयी प्रजातियों की खोज कर रहे हैं, नए ग्रहों का निर्माण भी जारी है. मानव कभी भी इस सृष्टि के ज्ञान को चुका नहीं सकता. वह स्वयं इस सृजन का भाग बन सकता है, लघु स्वार्थ को तजकर यदि कोई अपना दृष्टिकोण व्यापक कर ले तो जगत स्वयं आनंद का एक स्रोत बन जाता है.