योग और अध्यात्म का आश्रय लेकर ही हम देह और मन को स्वस्थ व प्रसन्न रख सकते हैं. योग का अर्थ है जुड़ना, स्वंय का इस सम्पूर्ण अस्तित्त्व के साथ जुड़ाव ही योग है. पतंजलि के अष्टांग योग की साधना के द्वारा इसे अनुभव किया जा सकता है, किन्तु ‘स्वयं’ का सही परिचय हमें अध्यात्म से प्राप्त होता है. शरीर, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार का अध्ययन करके अपने स्व को पहचानना ही अध्यात्म है. देह एक निश्चित आयु पूर्ण करके मिट्टी में मिल जाने वाली है. मन अधूरी कामनाओं को लेकर एक नए शरीर में प्रवेश करने वाला है, किन्तु स्व अथवा निजता को जिसने जान लिया वह जन्म और मृत्यु के इस चक्र से बाहर हो जाता है. वह होश में मरता है और होश में ही नयी देह धारण करता है, ऐसे ही मानव जन्म से संत अथवा सिद्ध होते हैं. शास्त्र और संत कहते हैं मृत्यु से पहले जिसने अपने आपको जान लिया, उसने उस कार्य को सिद्ध कर लिया जिसके लिए उसे मानव देह मिली थी.
"मृत्यु से पहले जिसने अपने आपको जान लिया, उसने उस कार्य को सिद्ध कर लिया जिसके लिए उसे मानव देह मिली थी" बिलकुल सही कहा सादर नमन
ReplyDeleteस्वागत व आभार कामिनी जी !
Deleteउपयोगी प्रवचन।
ReplyDeleteस्वागत व आभार!
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