जीवन प्रतिपल बदल रहा है. यहाँ जो स्थित है वह पर्वत भी रेत बनने की प्रक्रिया से गुजर रहा है आज नहीं कल वह भी बिखरेगा और आज जहाँ पहाड़ों की हरी-भरी घाटियाँ हैं लाखों वर्ष बाद ही सही, वहाँ मरुथल नजर आ सकते हैं. हम कहने को कहते हैं कि सेटल हो गए हैं पर यह मात्र शब्द ही है. जीवन किसी को कभी भी सेटल होने का अवसर नहीं देता, या तो आगे या पीछे उसे चलना ही होता है. जिंदादिल कहते हैं जीवन निरन्तर आगे बढ़ने और सीखने का नाम है. वहीं निराशावादी कहते हैं जीवन एक संघर्ष है, पीड़ा है, अन्याय है, वे हार कर बैठ जाते हैं, पर मिटते वह भी जाते हैं. जिनके लिए जीवन एक चुनौती है, वह हर कदम पर उसके पीछे छिपी आनंद लहर में भीगने का राज सीख लेते हैं. वह स्वयं को विकसित करते हैं, उनके लिए आकाश ही सीमा है. यहाँ ज्ञान भी अनंत है और उसे प्राप्त करने की क्षमता भी असीम है. परमात्मा अपनी माया से इस जगत की सृष्टि निरन्तर करता है, आज भी वैज्ञानिक नयी-नयी प्रजातियों की खोज कर रहे हैं, नए ग्रहों का निर्माण भी जारी है. मानव कभी भी इस सृष्टि के ज्ञान को चुका नहीं सकता. वह स्वयं इस सृजन का भाग बन सकता है, लघु स्वार्थ को तजकर यदि कोई अपना दृष्टिकोण व्यापक कर ले तो जगत स्वयं आनंद का एक स्रोत बन जाता है.
ज्ञानवर्धक और उपयोगी आलेख।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18 -8 -2020 ) को "बस एक मुठ्ठी आसमां "(चर्चा अंक-3797) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार !
Delete