Thursday, January 26, 2017

प्रेममयी तू ज्ञानमयी

२७ जनवरी २०१७ 
जगत प्रतिपल बदल रहा है. देह, मन, बुद्धि सभी कुछ तो प्रतिक्षण बदल रहे हैं. जब तक हम अपने भीतर एक ऐसी अवस्था का अनुभव नहीं कर लेते जो सदा एक सी रहती है, एक रस है, शांत है अचल है, हमारी बुद्धि और मन विश्राम को नहीं पा सकते. एक बार बुद्धि जब आत्मा के सान्निध्य का अनुभव कर लेती है तो उसकी दौड़ समाप्त हो जाती है. श्वासों के नियमन से अर्थात प्राणायाम के नियमित अभ्यास से जब मन ठहरने लगता है तो उसकी झलक मिलती है. साधक को यह अनुभव होता है कि उसके भीतर एक चेतना भी है जो प्रेममयी है.  मन बार-बार उस का संग पाना चाहता है और एक दिन उसे व्यवहार काल में भी भीतर एक सघन चेतना का अनुभव होने लगता है. तब संसार की कोई घटना उसके भीतर की शांति को भंग नहीं कर सकती क्योंकि चेतना स्वयं पर ही निर्भर है, वह स्वतंत्र है. 

Wednesday, January 25, 2017

सबका मंगल होए रे

२५ जनवरी २०१७ 
हम जीवन में कितने ही व्यक्तियों से मिलते हैं. जिनमें कुछ के साथ थोड़े समय के लिए कुछ के साथ देर तक हम समय बिताते हैं. विचारों का आदान-प्रदान भी होता है और वस्तुओं का भी. इससे भी सूक्ष्म एक शै है जिसका आदान-प्रदान निरंतर चलता रहता है, चाहे वह व्यक्ति सम्मुख हो या हम उसके बारे में किसी से बात कर रहे हों, या उसके बारे में कुछ सोच रहे हों. किसी के प्रति हमारी भावना केवल हम तक सीमित नहीं रह पाती, वह तत्क्षण उस तक पहुँच जाती है. स्थूल से सूक्ष्म अति शक्तिशाली है. हम शब्दों का ध्यान रख लेते हैं और भीतर क्रोध रखते हुए भी बाहर से जाहिर नहीं करते, कभी-कभी इसका विपरीत भी हो सकता है. कोई भीतर प्रेम होते हुए भी बाहर से उदासीनता व्यक्त करे, पर दोनों ही स्थितियों में सूक्ष्म तरंगों के द्वारा हमारी वास्तविक भावनाएं उसके अंतरतम तक पहुँच जाती हैं, और भविष्य में उसका व्यवहार उनसे भी प्रभावित होगा. इसीलिए संत कहते हैं सदा हृदय से सबके लिए मंगल कामना करते रहें. 

Tuesday, January 24, 2017

माली सींचे मूल को

२४ जनवरी २०१७ 
जीवन का निर्माण अंधकार में आरम्भ होता है, एक बीज को धरती के नीचे बोया जाता है और एक दिन वह वृक्ष का रूप ले लेता है, जड़ों के रूप में उसका स्रोत छिपा ही रहता है. जड़ों की भी यदि खोद के निकाल लें तो जीवन सूख जाता है. उन्हें वहीँ पोषित करना होता है. इसी तरह हमारा मूल भी भीतर छिपा है, जिसे वहीं पोषित करना है, मूल तक पहुंचने का नाम ही ध्यान है. देह को स्थिर करके पहले मन को देखना फिर मन को शांत करते हुए उस बीज तक पहुंचना जो जीवन का स्रोत है, यह पहला चरण है, फिर उस स्रोत को परम से जोड़ना जिससे वह पोषित हो सके दूसरा सोपान है. प्रार्थना भी ध्यान का विकल्प हो सकती है और नाम जप भी, अपनी-अपनी रूचि के अनुसार कोई भी मार्ग अपनाकर हम अपने मूल को सींच सकते हैं. 

Sunday, January 22, 2017

एक अचलता पलती भीतर

२३ जनवरी २०१७ 
संसार वही है जो पल-पल बदलता है, फिर अगर कोई व्यक्ति, परिस्थति या वस्तु बदल जाती है तो इसमें आश्चर्य कैसा..हम चाहते हैं संसार जैसा है वैसा ही बना रहे, यही तो वही बात हुई कि आग ठंडी रहे. अब संसार को बदलना ही है क्योंकि यही उसका स्वभाव है, और परमात्मा सदा एकरस है जो कभी नहीं बदलता, उसको पाकर हमारी अबदल रहने की इच्छा पूरी हो सकती है पर यदि हम परमात्मा की अचलता का अनुभव करना चाहते हैं तो कुछ पलों के लिए हमें भी स्थिर होना पड़ेगा, हम भी तो संसार का अंग हैं पल-पल बदल रहे हैं, अबदल का अनुभव कैसे हो. ध्यान में जब मन टिक जाता है तो परमात्मा को ढूँढने नहीं जाना पड़ता वह स्थिरता ही हमें उसका अनुभव करा देती है. 

Friday, January 20, 2017

समरसता जब भीतर छाये

२१ जनवरी २०१७ 
इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति तीनों हमारे पास हैं. सत, रज और तम तीनों गुण  भी मन व बुद्धि, व संस्कारों में हैं  में हैं. मन ही इच्छा शक्ति को धारण करता है और सदा संकल्प-विकल्प उठाता रहता है. सात्विक मन में ही शुद्ध संकल्प जगता है. बुद्धि यदि सात्विक होगी तो ज्ञान शक्ति भी शुद्ध होगी. जैसा ज्ञान होगा वैसे ही संकल्प उठेंगे फिर वैसे ही कर्म होंगे, जब तीनों शक्तियाँ एक रस होंगी तभी जीवन में सुख और संतोष बढ़ेगा. इच्छा यदि अपरिमित है, ज्ञान उसके अनूरूप नहीं है और कर्मशीलता भी नहीं सधती तो भीतर समरसता कैसे हो सकती है. इसीलिए संत कहते हैं, साधक मनसा, वाचा, कर्मणा सदा एकरस होकर रहे, जैसा सोचे, वैसा ही बोले, वैसा ही उसका कृत्य भी हो.

Thursday, January 19, 2017

छिपे आज में दोनों कल

२० जनवरी २०१७ 
आज तक न जाने कितनी बार हमें यह लगा है, एक दिन सब ठीक हो जाएगा, और अब वे बातें याद भी नहीं हैं जिनके ठीक होने की कभी हमने कामना की थी. अतीत जैसे स्वप्न हो गया है, भविष्य कैसा होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारा आज कैसा है. वर्तमान ही भविष्य का बीज है, जैसा बीज वैसी फसल, सीधा सा हिसाब है, तो यही क्षण है जिसे हम आनंदित होकर जी सकते हैं.जो मिला था वह स्वप्न हो गया, जो मिलेगा वह आज के आनंद से ही उपजेगा, यही आध्यात्म हमें सिखाता है. वर्तमान का सुख ही एक दिन सुखद अतीत बनेगा और यही भविष्य की नींव है. वर्तमान में हमें सुखी होने से रोक रहे हैं यही दोनों, अतीत की स्मृतियां और भविष्य की कल्पना..समाधि है इनसे पार जाना. 

Monday, January 16, 2017

निज भाग्य का निर्माता मन

१७ जनवरी २०१७ 
हमारे आस-पास प्रतिपल कितना कुछ घटता रहता है. कुछ अनचाहा कुछ मनचाहा, पर हर वक्त हमारे पास यह अधिकार होता है कि हम क्या प्रतिक्रिया करें. ऊपर-ऊपर से लगता है हम जो भी प्रतिक्रिया कर रहे हैं वह बाहर की घटना के कारण है पर वास्तव में ऐसा नहीं है, हम यदि किसी बात पर सुखी या दुखी होते हैं तो यह केवल और केवल हम पर निर्भर है. ईश्वर ने हमें यह पूर्ण स्वतन्त्रता दी है कि किस समय हमारे मन की स्थिति कैसी रहे. जैसा भी भाव भीतर जगता है वह न केवल हमारी मानसिक दशा को दर्शाता है बल्कि भविष्य के लिए बीजारोपण भी हो जाता है. प्रतिक्रिया स्वरूप जगाया गया द्वेष भावी दुःख का कारण बनने ही वाला है. यदि संतोष का भाव जगाया तो भविष्य भी सुखमय होगा. 

Tuesday, January 10, 2017

यायावर जब मन बन जाये

१० जनवरी २०१७ 
हम सभी कभी न कभी छोटी या बड़ी यात्रा पर निकलते हैं. कोई हफ्ते भर के लिए जा रहा हो या चार दिन के लिए, एक सूटकेस में सारा जरूरत का सामान ले लेता है. यात्रा में कुछ न कुछ तकलीफें झेलनी पड़ सकती हैं उसकी भी पूरी तैयारी मन को होती है. चार दिन जहाँ भी रहे, उस स्थान को अपना घर मान लिया पर छोड़ते समय तिल मात्र भी दुःख नहीं होता. जिस स्थान पर भी जाते हैं कम से कम समय में उस जगह को देख लेना चाहते हैं. यात्रा पर जाते समय हम अपने अच्छे वस्त्र ही लेकर जाते हैं. कम साधनों में भी स्वयं को टिप टॉप रखते हैं. यह जीवन भी तो एक यात्रा है. जरूरतें कम हों यानि घर में आवश्यक सामान ही हो तो घर कितना खुला-खुला सा  रहेगा और हवा व धूप को आने जाने के लिए कोई बाधा नहीं होगी. रोजमर्रा के जीवन में आने वाली तकलीफें तब सामान्य ही लगेंगी. अच्छे वस्त्र जो हम पता नहीं किन दिनों के लिए बचाकर रखे रहते हैं, रोज ही पहनेंगे और स्वयं को सदा फिट महसूस करेंगे, जब चाहे बाहर जाने के लिए तैयार. अपने शहर को देखने की भी हममें  उत्सुकता जगेगी, अपने आस-पास के कई स्थान जो यह कहकर अनदेखे ही रह जाते हैं कि बाद में देख लेंगे, वे भी देख लिए जायेंगे, और जब महायात्रा पर निकलने का समय आएगा तो ख़ुशी-ख़ुशी इस जगत से विदा लेंगे. यायावर मन सदा ही यात्रा में रहता है. 

Friday, January 6, 2017

हर कदम पर साथ है वह


अध्यात्म के पथ पर हम सजग होकर चलते हैं तो कोई अदृश्य हमारा हाथ थाम लेता है. लक्ष्य यदि स्पष्ट हो तो रास्ते  खुदबखुद बनते जाते हैं. मानव जन्म पाकर भी यदि परम को लक्ष्य नहीं बनाया तो हमने अपने भीतर की संपदा को पहचाना ही नहीं। भारत में जन्म लिया और सन्तों की हवा में श्वास भरे तो उनकी मस्ती को पा लेने की सहज प्यास भीतर क्यों न जगे? एक ललक उन जैसा होने की यदि मन में बीज की तरह पड़ गयी तो एक न एक दिन वृक्ष बन ही जाएगी, जिस पर भक्ति के फूल लगेंगे। परमात्मा की सत्ता पर अटल विश्वास और उससे एक संबन्ध, ये दो ही  इस मार्ग के पाथेय हैं, मार्ग मधुर है और संगी वह खुद है जिस तक हमें जाना है.

Thursday, January 5, 2017

जीवन जब वरदान बने

६ जनवरी २०१७ 
जीवन कितना अनोखा है. जब हम पल भर भी रुककर विस्तीर्ण गगन पर नजर डालते हैं या उगते हुए सूर्य की किरणों से चमक रही ओस की बूंदों पर हमारी दृष्टि टिकती है तो प्रकृति की भव्यता तत्क्षण मन्त्र मुग्ध कर लेती है. जब रोजमर्रा की बातों में ही इतना खो जाते हैं कि उषा की लाली और संध्या की सुरम्यता हमें छू ही नहीं पाती तो जीवन में एक नीरसता भर जाती है. हमारा मस्तिष्क कभी अति भावुक हो उठता है तो कभी बिलकुल रूखा-सूखा, दोनों ही व्यवहार परमात्मा से दूर ले जाते हैं. जब जीवन में एक समता का उदय होता है,  जीवन एक मधुर संगीत से भर उठता है. भीतर रहते हुए बाहर व्यवहार करना हम सीख जाते हैं. जैसे कोई दीप देहरी पर रखा हो तो वह अंदर बहर दोनों को प्रकाशित करता है ऐसा ही मन जब जगत में रहते हुए भी अंतर से जुड़ा रहता है तो चारों ओर का सौन्दर्य उसे हर क्षण अभिभूत किये रहता है.

चेतन अमल सहज सुख राशि

५ जनवरी २०१७ 
अध्यात्म हमें सिखाता है कि देह से परे चेतना का एक स्वतंत्र अस्तित्त्व है और वह अपने आप में सम्पूर्ण है. संसार हमें शरीर को रखने में सहायक हो सकता है पर अखंड आनंद का अनुभव नहीं करा सकता, उसे पाने का रास्ता अध्यात्म ने बताया है. जिसके द्वारा मानव सारे भयों से मुक्त हो सकता है, व्यर्थ के कार्यों से बच सकता है, अपनी ऊर्जा का पूरा सदुपयोग कर सकता है. अपने आस-पास के वातावरण को सुखमय तथा सुंदर बनाने में मदद कर सकता है. भीतर की शक्ति का अनुभव कराके वह दिव्यता को प्राप्त करा सकता है. जड़ अनित्य है, वह प्रतिक्षण बदल रहा है, चेतन अविनाशी है. उसे पाने का प्रयास नहीं करना पड़ता. जड़ से दृष्टि हटते ही वह स्वयं प्रकट हो जाता है. सारे क्लेशों से मुक्ति का नाम ही चेतना में स्थित होना है.

Wednesday, January 4, 2017

एक तलाश परम पद की

४ जनवरी २०१७ 
 हम सब सफल होना चाहते हैं. सबसे आगे भी रहना चाहते हैं. मानव  स्वभाव में ही यह गुंथा हुआ है कि वह थोड़े से संतुष्ट नहीं होता. सब कुछ पाकर भी उसे ऐसा लगता है कि कुछ अधूरा सा है. ऐसे में क्या जरूरी नहीं है कि हम थोड़ी देर थमकर गहराई से इसका कारण सोचें. जब हमसे काफी आगे वाला भी संतुष्ट नहीं है तो  वहाँ पहुच कर क्या हम संतुष्ट हो जायेंगे. इसका उत्तर भीतर से ही मिलेगा. संत कहते हैं हमारी तलाश तब तक जारी रहेगी जब तक हम उस पद को नहीं पा लेते जहाँ पूर्ण संतुष्टि है. वह पद अनंत है जिस पर हर कोई हर वक्त बैठ सकता है, उस की अभीप्सा हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. किन्तु हम उस मार्ग को नहीं जानते जिससे वहाँ जाया जा सकता है. ध्यान ही वह मार्ग है, इस मार्ग पर चलने वाला यात्री किसी से आगे जाना नहीं चाहता वह अपनी यात्रा भीतर ही भीतर करता है और उस तक पहुँच जाता है. 

Monday, January 2, 2017

स्वस्थ हुए से हों आनंदित

३ जनवरी २०१७ 
हम सभी स्वस्थ रहना चाहते हैं, और यह सोचते हैं यदि हमें कोई रोग नहीं है तो हम स्वस्थ हैं. किन्तु निरोगी और स्वस्थ दोनों के अर्थ में भिन्नता है. निरोगी का अर्थ है देह में रोग का न होना किन्तु स्वस्थ का अर्थ है स्व में स्थित होना. अर्थात कोई भी  स्वस्थ तभी हो सकता है जब अपने मूल में, निजता में स्थित हो. रोग होने पर हमें दुःख का अनुभव होता है और निरोगी होने पर सुख का, किन्तु स्वस्थ होने पर एक ऐसे आनन्द की अनुभूति होती है जिसका कारण बाहरी नहीं है, यह भीतर से आता है. जिसने कभी स्व का अनुभव नहीं किया वह रोग आने पर अति व्याकुल हो जाता है, वह भीतर प्रवेश ही नहीं कर पाता और कभी कोई रोग न होने पर भी उसका मन अशांत हो सकता है. अतः पहले पहल तो निरोगी होने पर ही हम स्वस्थ हो सकते हैं पर एक बार यदि स्व का अनुभव हो गया हो तो कभी ऐसा भी हो सकता है की किसी कारणवश देह रोगी हो पर हम भीतर से शांत हों, आनन्दित हों.

Sunday, January 1, 2017

एक पहेली सा ही जीवन

२ जनवरी २०१६ 
जीवन सरल से सरल भी हो सकता है और कठिन से कठिन भी. हमारे सामने यह एक कोरे कागज की तरह आता है, जिस पर सवाल भी हम खुद लिखते हैं और जाहिर है जवाब भी हमें ही लिखने हैं. यदि कोई चाहे तो सवालों को इतना कठिन बनाता जाये कि स्वयं ही उनमें उलझ जाये और यदि कोई चाहे तो बच्चों की पहेली जैसे उसे खेल बनाकर हल करने का आनन्द लेता रहे. हमारे पास समय है, ऊर्जा है, देह रूपी उपकरण हैं, और बुद्धि रूपी  शक्ति है,  जिनसे  हम इस जीवनलीला का आनन्द लेते हैं. संत कहते हैं इस ऊर्जा का सदुपयोग होगा तो इसकी भरपाई सहज ही होती रहेगी और यदि इसका उपयोग नहीं किया गया तो यह ऊर्जा ही दुःख का कारण भी बन सकती है अथवा तो जीवन में एकरसता का.