Sunday, January 22, 2017

एक अचलता पलती भीतर

२३ जनवरी २०१७ 
संसार वही है जो पल-पल बदलता है, फिर अगर कोई व्यक्ति, परिस्थति या वस्तु बदल जाती है तो इसमें आश्चर्य कैसा..हम चाहते हैं संसार जैसा है वैसा ही बना रहे, यही तो वही बात हुई कि आग ठंडी रहे. अब संसार को बदलना ही है क्योंकि यही उसका स्वभाव है, और परमात्मा सदा एकरस है जो कभी नहीं बदलता, उसको पाकर हमारी अबदल रहने की इच्छा पूरी हो सकती है पर यदि हम परमात्मा की अचलता का अनुभव करना चाहते हैं तो कुछ पलों के लिए हमें भी स्थिर होना पड़ेगा, हम भी तो संसार का अंग हैं पल-पल बदल रहे हैं, अबदल का अनुभव कैसे हो. ध्यान में जब मन टिक जाता है तो परमात्मा को ढूँढने नहीं जाना पड़ता वह स्थिरता ही हमें उसका अनुभव करा देती है. 

No comments:

Post a Comment