Friday, January 31, 2020

मिलजुल रहना जब सीखेंगे


जब चारों ओर अफरातफरी मची हो, कोई किसी की बात सुनने को ही तैयार न हो.  समाज में भय का वातावरण बनाया जा रहा हो और भीड़ को बहकाया जा रहा हो, भीड़ जो भेड़चाल चलती है, जो विरोध करते-करते  कभी हिंसक भी हो जाती है. समाज जब ऐसे दौर से गुजर रहा हो तो सही बात पीछे रह जाती है. यदि सभी अपना-अपना निर्धारित काम सही ढंग से करें,   तो समाज को आगे बढ़ने से कौन रोक सकता है. भारत भूमि पर रहने वाला हर व्यक्ति भारत के विकास के लिए उत्तरदायी है. कश्मीर से कन्याकुमारी तक किसी भी वर्ग, वर्ण, आश्रम, समुदाय या प्रदेश का रहने वाला व्यक्ति समान है, उसके अधिकार समान हैं और कर्तव्य भी. आज सभी अधिकारों की बात करते हैं पर जिसे जहाँ जो कार्य करना चाहिए, उसकी बात नहीं करता. विश्व विद्यालय अध्ययन व अध्यापन करने-कराने की जगह आंदोलन का केंद्र न बनें. बगीचे टहलने व खेलने के स्थान पर संघर्ष के लिए केंद्र न बनें. भारत जिस बात के लिए विश्व प्रसिद्ध है उस सौहार्द, आत्मीयता और ज्ञान को कोई  भुलाए नहीं, जिसके बिना आपसी मतभेद को दूर करना बहुत कठिन है.

Saturday, January 25, 2020

पानी जैसा मन हो जिसका



जीवन में जब कुछ ऐसा घटे जिसका कारण समझ में न आये तो यह मानकर विश्राम कर लेना चाहिए कि समस्त कारणों का परम कारण परमात्मा है. यही वास्तविक ज्ञान है. जो विश्वासी है वही आत्मविश्वासी भी हो सकता है. आत्मनिष्ठा और ज्ञाननिष्ठा के बिना की गयी साधना काम नहीं आती. साधना का अर्थ है मन की तरलता. मन में किसी बात को ठहरने नहीं देना तथा वर्तमान में मुक्त हृदय से आगे बढ़ना. जब भी मन किसी घटना, वस्तु या व्यक्ति में राग-द्वेष करता है, वह अटक जाता है. मन यदि पानी की तरह बहता हुआ न रहे तो उसमें काई जम जाती है और उससे दुःख की गन्ध आने लगती है. हर मानसिक दुःख यही बताता है कि भीतर कुछ ठहर गया है. प्राणायाम के द्वारा, प्रकृति के साथ समय बिताकर, संगीत में या ध्यान में मन को लय होने देना इससे बाहर आने का निरापद उपाय है. जीवन में उल्लास का फूल खिलाना हो तो स्वयं को खोने की कला सीखनी ही होगी. खिलाड़ी खेल में खुद को भुला देता है, नर्तक नृत्य में और भक्त भक्ति में डूब जाता है. छोटा मन जब खो जाता है तभी परम आनंद प्रकट होता है.

Tuesday, January 21, 2020

जीवन का जो लक्ष्य साध ले



सन्त और शास्त्र हमें समझाते हैं कि मन को विकारों से मुक्त करें, परमात्मा का नाम भजें और जिस काम के लिए मानव जन्म मिला है उसे करने में अपना समय लगाएं. सुबह से शाम तक हमारा समय नौकरी करने, भोजन करने, विश्राम करने में ही निकल जाता है. जो समय हाथ में रहता है वह टीवी, अख़बार, मोबाईल आदि में चला जाता है. कभी घूमने में तो कभी सिनेमा आदि देखने में या रिश्तेदारों और मित्रों से मिलने में चला जाता है. इन सब कार्यों में कितनी बार अनचाहा होता है तो मन उदास होता है, क्रोध से भर जाता है, कभी झुंझलाहट से और कभी द्वेष से. मन जब पूरी तरह प्रसन्न होता है ऐसे क्षण भी आते हैं पर वे टिकते नहीं. इसी तरह जीवन गुजरता जाता है और एक दिन जीवन की साँझ आ जाती है. परमात्मा से जिसने नाता जोड़ा ही नहीं उसे उसके नाम स्मरण में कैसे आनन्द आएगा, जिसने कभी मन को समझा ही नहीं, वह मन के पार जाकर शांति का अनुभव कैसे कर पायेगा, इसीलिए वृद्धावस्था आते ही रोग पकड़ लेते हैं. अधिकांश रोगों का संबंध मन से होता है, मन यदि सहज रूप से प्रसन्न रहना नहीं जानता, वह तनावपूर्ण स्थिति में रहता है, तनाव से ही देह में जहरीले रसायनों का जन्म होता है और शरीर भी अस्वस्थ हो जाता है. बचपन से ही यदि हम बच्चों और युवाओं को ध्यान, स्मरण आदि से जुड़ना सिखाएं तो उनका जीवन अंतिम श्वास तक खुशियों से भर रह सकता है.

करुणा का जब जन्म हो भीतर



जीवन को गहराई से देखें तो एक सन्नाटा ही हाथ लगता है. किसी भी बात का जवाब नहीं मिलता, जैसे कोई पूछे भाषा का जन्म कैसे हुआ, स्वर व अक्षर किसने बनाये, कोई नहीं बता सकता. अनादि काल से यह चली आ रही है, चीजें हैं और हमें उनके स्रोत का कोई ज्ञान नहीं है. सन्त और शास्त्र कहते हैं, पहले स्वयं को जानो फिर जगत का रहस्य अपने-आप खुल जायेगा. स्वयं का होना और उसे जानना एक ही बात है, क्योंकि स्वयं ही तो स्वयं को जान रहा है, वहां कोई दूरी नहीं है. हमारा खुद का होना जब सत्य प्रतीत होता है, फिर उसी मौन से सामना होता है, किंतु यह मौन एक अनुपम शांति का अहसास कराता है. बुद्ध कहते हैं, इसी शांति से करुणा का जन्म होगा. मानव होने की पराकाष्ठा है करुणा. यह तभी जन्मती है जब भीतर कोई भय नहीं बचता, न ही घृणा या द्वेष. किसी भी बुद्ध के लिए जगत में कोई भी दूसरा नहीं है, उनका ही एक फैलाव है. उनके प्रेम की धारा सहज ही जगत की ओर बहती है. घ्यान की गहराई में ही स्वयं का बोध होता है, इसीलिए ध्यान का इतना महत्व है.

Friday, January 17, 2020

सत्य समान तप नहीं दूजा



आज के बदलते हुए दौर में आरम्भ से ही बच्चों को योग और ध्यान से परिचित कराना आवश्यक बन गया है. बच्चों को सत्य आसानी से अनुभव में आता है क्योंकि उनके पास अहंकार की कोई बाधा नहीं होती, न ही वे हर बात को बुद्धि से तोलते हैं. वे सीधे हृदय से ही अनुभव करते हैं. बुद्ध कहते हैं, जीवन में सभी कुछ परस्पर निर्भर है और नश्वर है. प्रकृति निरन्तर परिवर्तित हो रही है. ध्यान की गहराई में जब देह, मन, भावना, विचार सब कुछ स्पष्ट बदलते हुए दिखाई देते हैं तब उनके द्वारा प्रभावित होने का डर नहीं रहता. सत्य कभी बदलता नहीं और जगत एक सा रहता नहीं, इस बात को जब भीतर अनुभव कर लिया जाता है तो जीवन सरल हो जाता है, प्रेममय हो जाता है और सारा विषाद खो जाता है. वर्तमान में टिकना ही जागरण है. वर्तमान के क्षण में ही जीवन से मुलाकात हो सकती है. जैसे ही मन अतीत या भविष्य में जाता है, सत्य से नाता टूट जाता है. अतीत जा चूका, वह मिथ्या है, भविष्य अभी आया नहीं, केवल यही क्षण सत्य है. इस क्षण में पुरे होश के साथ जीना ही साधक का कर्त्तव्य है. ऊर्जा का सरंक्षण तभी सम्भव है.