जीवन को गहराई से देखें तो एक सन्नाटा ही हाथ लगता है. किसी भी बात का जवाब नहीं मिलता, जैसे कोई पूछे भाषा का जन्म कैसे हुआ, स्वर व अक्षर किसने बनाये, कोई नहीं बता सकता. अनादि काल से यह चली आ रही है, चीजें हैं और हमें उनके स्रोत का कोई ज्ञान नहीं है. सन्त और शास्त्र कहते हैं, पहले स्वयं को जानो फिर जगत का रहस्य अपने-आप खुल जायेगा. स्वयं का होना और उसे जानना एक ही बात है, क्योंकि स्वयं ही तो स्वयं को जान रहा है, वहां कोई दूरी नहीं है. हमारा खुद का होना जब सत्य प्रतीत होता है, फिर उसी मौन से सामना होता है, किंतु यह मौन एक अनुपम शांति का अहसास कराता है. बुद्ध कहते हैं, इसी शांति से करुणा का जन्म होगा. मानव होने की पराकाष्ठा है करुणा. यह तभी जन्मती है जब भीतर कोई भय नहीं बचता, न ही घृणा या द्वेष. किसी भी बुद्ध के लिए जगत में कोई भी दूसरा नहीं है, उनका ही एक फैलाव है. उनके प्रेम की धारा सहज ही जगत की ओर बहती है. घ्यान की गहराई में ही स्वयं का बोध होता है, इसीलिए ध्यान का इतना महत्व है.
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