Friday, January 17, 2020

सत्य समान तप नहीं दूजा



आज के बदलते हुए दौर में आरम्भ से ही बच्चों को योग और ध्यान से परिचित कराना आवश्यक बन गया है. बच्चों को सत्य आसानी से अनुभव में आता है क्योंकि उनके पास अहंकार की कोई बाधा नहीं होती, न ही वे हर बात को बुद्धि से तोलते हैं. वे सीधे हृदय से ही अनुभव करते हैं. बुद्ध कहते हैं, जीवन में सभी कुछ परस्पर निर्भर है और नश्वर है. प्रकृति निरन्तर परिवर्तित हो रही है. ध्यान की गहराई में जब देह, मन, भावना, विचार सब कुछ स्पष्ट बदलते हुए दिखाई देते हैं तब उनके द्वारा प्रभावित होने का डर नहीं रहता. सत्य कभी बदलता नहीं और जगत एक सा रहता नहीं, इस बात को जब भीतर अनुभव कर लिया जाता है तो जीवन सरल हो जाता है, प्रेममय हो जाता है और सारा विषाद खो जाता है. वर्तमान में टिकना ही जागरण है. वर्तमान के क्षण में ही जीवन से मुलाकात हो सकती है. जैसे ही मन अतीत या भविष्य में जाता है, सत्य से नाता टूट जाता है. अतीत जा चूका, वह मिथ्या है, भविष्य अभी आया नहीं, केवल यही क्षण सत्य है. इस क्षण में पुरे होश के साथ जीना ही साधक का कर्त्तव्य है. ऊर्जा का सरंक्षण तभी सम्भव है.

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