जीवन में जब कुछ ऐसा घटे जिसका कारण समझ में न आये तो यह मानकर विश्राम कर लेना चाहिए कि समस्त कारणों का परम कारण परमात्मा है. यही वास्तविक ज्ञान है. जो विश्वासी है वही आत्मविश्वासी भी हो सकता है. आत्मनिष्ठा और ज्ञाननिष्ठा के बिना की गयी साधना काम नहीं आती. साधना का अर्थ है मन की तरलता. मन में किसी बात को ठहरने नहीं देना तथा वर्तमान में मुक्त हृदय से आगे बढ़ना. जब भी मन किसी घटना, वस्तु या व्यक्ति में राग-द्वेष करता है, वह अटक जाता है. मन यदि पानी की तरह बहता हुआ न रहे तो उसमें काई जम जाती है और उससे दुःख की गन्ध आने लगती है. हर मानसिक दुःख यही बताता है कि भीतर कुछ ठहर गया है. प्राणायाम के द्वारा, प्रकृति के साथ समय बिताकर, संगीत में या ध्यान में मन को लय होने देना इससे बाहर आने का निरापद उपाय है. जीवन में उल्लास का फूल खिलाना हो तो स्वयं को खोने की कला सीखनी ही होगी. खिलाड़ी खेल में खुद को भुला देता है, नर्तक नृत्य में और भक्त भक्ति में डूब जाता है. छोटा मन जब खो जाता है तभी परम आनंद प्रकट होता है.
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