Wednesday, April 27, 2022

कण-कण में जो देखे उसको

हम जिस वस्तु, व्यक्ति अथवा परिस्थिति का हृदय से सम्मान करते हैं, उससे मुक्तता का अनुभव करते हैं अर्थात उनके अवाँछित प्रभाव या अभाव का अनुभव नहीं करते। सम्मानित होते ही वे हमारे भीतर लालसा का पात्र नहीं रहते। यदि हम सभी का सम्मान करें तत्क्षण मुक्ति का अनुभव होता है. इसीलिए ऋषियों ने सारे जगत को ईश्वर से युक्त बताया है. अन्न में ब्रह्म को अनुभव करने वाला व्यक्ति कभी उसका अपमान नहीं कर सकता, भोजन में पवित्रता का ध्यान रखता है. शब्द में ब्रह्म को अनुभव करने वाला वाणी का दुरूपयोग नहीं करेगा। स्वयं को समता में रखने के लिए, वैराग्य के महान सुख का अनुभव करने के लिए, कमलवत जीवन के लिए आवश्यक है इस सुंदर सृष्टि और जगत के प्रति असीम सम्मान का अनुभव करना। 

Monday, April 25, 2022

जीवन में जब रंग भरेगा


हमारा मूल स्वभाव प्रेम है, लेकिन उस तक हमारी पहुँच ही नहीं है. जिस देह-मन के साथ हमने तादात्म्य कर लिए है, वह इसके विपरीत है. मन बटोरना चाहता है, वह सदा भयग्रस्त रहता है, वह अन्यों से तुलना करता है. मन प्रकृति का अंश है, जो सदा बदलती रहती है, इसलिए मन के स्तर पर बने सम्बन्धों में स्थायित्व नहीं होता, वे कभी प्रेम तो कभी क्रोध से भर जाते हैं. मन जिस स्रोत से प्रकटा है, वह आत्मा सदा एक सी है, वह आकाशवत निर्द्वन्द्व एक असीम सत्ता है, वहाँ अनंत आनंद व अनंत प्रेम है. उसका ज्ञान होने पर तथा उसके साथ तादात्म्य करने पर हमारा सारा भय खो जाता है, हम लोभ, क्रोध, मोह आदि विकारों के शिकार नहीं होते. हम मन की माया के पार चले जाते हैं. अपने आप से मुलाकात होती है. प्रह्लाद का जन्म होता है और विकारों की होली जलती है, तब जीवन में रंग ही रंग भर जाते हैं. 


Thursday, April 21, 2022

प्रेम गली अति सांकरी

 अहंकार स्वयं को बचाए रखने के लिए तर्क का आश्रय लेता है। प्रेम हर तर्क से ऊपर है, वह आत्मा का सहज गुण है। प्रेम को मरने का भय नहीं होता, वह शाश्वत है। जहाँ प्रेम है वहाँ अभय है। अहंकार आहत  होता है तो प्रतिशोध लेना चाहता है, प्रेम पिघल जाता है, वह दीनता का अनुभव करता है। प्रेम में भी विरह की पीड़ा है पर वह पीड़ा मन को शुद्ध करती है। अहंकार से उत्पन्न पीड़ा दुःख का कारण होती है। संत कहते हैं जब भी भीतर दुःख हो शरण में आ जाना चाहिए। अहंकार में व्यक्ति स्वयं प्रमुख होता है, प्रेम में सामने वाला मुख्य होता है, उसकी प्रसन्नता में ही प्रेमी अपनी ख़ुशी देखता है।   

Monday, April 18, 2022

प्राण ऊर्जा बहे अबाध जब


आयुर्वेद के अनुसार शरीर के सभी अंगों में प्राण-ऊर्जा का प्रवाह वैसे तो चौबीस घण्टे होता है,पर हर समय एक सा प्रवाह नहीं होता. प्रायः जिस समय जो अंग सर्वाधिक सक्रिय हो उस समय उससे सम्बन्धित कार्य करने से हम उसकी पूर्ण क्षमता का उपयोग कर सकते हैं. प्रातः तीन बजे से पांच बजे तक फेफड़ों में प्राण ऊर्जा का प्रवाह सर्वाधिक रहता है, इसी कारण ब्रह्म मुहूर्त में उठकर खुली हवा में घूमने अथवा  प्राणायाम आदि करने से शरीर स्वस्थ बनेगा. सुबह पांच बजे से सात बजे तक ऊर्जा बड़ी आंत में जाती है, जो व्यक्ति इस समय सोये रहते हैं व शौच क्रिया नहीं करते उन्हें कोई न कोई पेट का रोग हो सकता है. इस समय योगासन व व्यायाम करना चाहिए. सात से नौ बजे तक सर्वाधिक ऊर्जा आमाशय में रहती है इसलिए सुबह का नाश्ता जल्दी कर लेना चाहिए. नौ से ग्यारह बजे तक तिल्ली और पैंक्रियाज की सक्रियता का समय है, यदि दोपहर का भोजन ग्यारह बजे या उसके कुछ बाद कर लें तो पाचन अच्छा हो सकता है. दिन में ग्यारह से एक बजे तक हृदय में विशेष ऊर्जा का प्रवाह होता है. हृदय हमारी संवेदनाओं, दया, करुणा तथा प्रेम का प्रतीक है, इस समय लेखन या रूचि का कोई काम अच्छा हो सकता है. दोपहर में एक बजे से तीन बजे तक छोटी आंत में पोषण का कार्य होता है, इसलिए दोपहर का भोजन देर से नहीं करना चाहिए. शाम को पांच से सात बजे तक किडनी में ऊर्जा का प्रवाह होता है. शाम का भोजन सात बजे तक कर लेना चाहिए. सात से नौ बजे तक ऊर्जा मस्तिष्क में जाती है, यह समय अध्ययन के लिए उत्तम है. नौ से ग्यारह बजे तक रीढ़ की हड्डी में सर्वाधिक ऊर्जा होती है, यह समय सोने के लिए उत्तम है. रात्रि ग्यारह से एक बजे तक पित्ताशय में ऊर्जा प्रवाहित होने से मानसिक गति विधियों पर नियंत्रण होता है, इस समय जगे रहने से पित्त तथा नेत्र के रोग हो सकते हैं. रात्रि एक से तीन बजे तक लिवर में ऊर्जा का परवाह सर्वाधिक होता है, इस समय गहरी नींद आवश्यक है. लिवर से पुनः ऊर्जा फेफड़ों में चली जाती है और एक नए दिन का आरम्भ होता है. 

(गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित कल्याण में प्रकाशित एक लेख से साभार )

Tuesday, April 12, 2022

स्वयं से जो भी मिलना चाहे

 सन्त कहते हैं, अहंकार ही वह पर्दा है जो हमें अपने वास्तविक स्वरूप से मिलने नहीं देता. हमारा छोटा  मन अहंकार के बलबूते पर ही अपने पाँव जमाये है, जबकि बड़ा मन अर्थात आत्मा स्वयंभू है, जैसे एक कमरे के भीतर का स्थान दीवारों पर निर्भर है पर बाहर का अनंत स्थान है ही. वास्तव में तो भीतर का स्थान भी उसी अनंत का ही एक भाग है, इसी तरह छोटा मन भी विशाल मन का ही भाग है पर अहंकार कहता है, यदि तुम मुझे त्याग दोगे तो तुम्हारे पास शेष ही क्या रह जायेगा, तुम्हारा अंत ही हो जायेगा. क्या तुम्हें अपनी पहचान नहीं बनानी, और इसी तरह अहंकार की बातों में आकर हम  अपने आपको धन, पद, सम्मान और समृद्धि के बल पर बड़ा सिद्ध करना चाहते हैं. हमें यह ज्ञात ही नहीं हो पाता भीतर अनंत शून्य है जिसे भरने की लाख कोशिश करें वह सदा रिक्त ही रहेगा. जब एक न एक दिन व्यक्ति इस दौड़ में हार जाता है तब वह सच्चे अर्थों में ईश्वर के निकट जाता है, अपना अहंकार गला कर जब वह स्वयं की दीनता को स्वीकार कर लेता है तब भीतर से एक अनोखी शांति का अनुभव उसे पहली बार होता है जो दुनिया का कोई धन या पद नहीं दे सकता.  वही मानव का अपने आप से परिचय है. इस शांति के भी पार परमात्मा का अनंत साम्राज्य है जहाँ शास्त्र और गुरुजन हमें ले जाना चाहते हैं. 

Wednesday, April 6, 2022

कला ध्यान की सीखी जिसने

संत कहते हैं आत्मा कर्ता नहीं है, तब पाप, पुण्य कैसे उसे बांध सकते हैं। आत्मा द्रष्टा व ज्ञाता है। मन, वाणी व देह प्रकृति में हैं, वे प्रकृति के अनुसार कर्म करते हैं। सात्विक, राजसिक अथवा तामसिक प्रकृति के अनुसार भिन्न-भिन्न योनियों में जाते हैं और आत्मा उनके साथ जाता हुआ प्रतीत होता है। आकाश का चंद्रमा जैसे झील में हिलता हुआ लगता है पर वास्तव में वह सदा स्थिर है। जैसे अग्नि का संग पाकर लोहा अग्नि का रूप धर लेता है पर संग छूटते ही शीतल होकर अपने रूप में आ जाता है, वैसे ही देह व मन आत्मा की निकटता से चेतन प्रतीत होते हैं। गहरी नींद में न देह को अपना भान रहता है न ही  मन को, आत्मा फिर भी रहता है और जाग कर वही कहता है रात को नींद अच्छी आयी। ध्यान में जागते हुए देह और मन के पार जाकर आत्मा का अनुभव किया जा सकता है।

Monday, April 4, 2022

यही सनातन धर्म सिखाता

कहीं युद्ध, कहीं भयावह आर्थिक संकट, कहीं महामारी का बढ़ता हुआ प्रकोप तो कहीं राजनीतिक अस्थिरता, विश्व के अनेक देश आज इन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। अपने देश में देखें तो किसी राज्य में राजनीतिक हिंसा, कहीं धार्मिक कट्टरता के कारण उपजा द्वेष कहीं नक्सलवाद, कहीं अलगाववाद किंतु इन सबके मध्य भी अध्यात्म और योग के कारण एक समरसता की भावना भी छायी है, जिसके स्वर मंद चाहे हों पर बहुत शक्तिशाली हैं। भारत का बढ़ता हुआ आयात, आर्थिक सम्पन्नता, पड़ोसी देशों को निस्वार्थ सहयोग और कई राज्यों में शांति और विकास की लहर इसकी गवाही देती है। भारत में लोकतंत्र की जड़ें बहुत गहरी हैं, यह सनातन धर्म की पहचान है। मानव जीवन के वास्तविक लक्ष्य को यहाँ का आम आदमी भी जानता है, मोक्ष का विचार यहाँ की हवा में घुला है। यहाँ एक जन्म की बात नहीं की जाती, एक अनंत जीवन हम पीछे छोड़ आए हैं और हम जानते हैं कि आने वाले अनेक जन्मों का सुख-दुःख हमारे आज के कर्मों पर निर्भर है। हर बार श्रेष्ठता की ओर बढ़ना है। कृष्ण की गीता को चाहे सबने न भी पढ़ा हो पर केवल परमात्मा  का नाम ही सत्य है, इससे कौन अनभिज्ञ है। भारत की इस संस्कृति का हमें सम्मान करना है और इसकी गूंज सारे विश्व तक पहुँचे इसलिए इसका पालन और विस्तार करना है।