Tuesday, April 12, 2022

स्वयं से जो भी मिलना चाहे

 सन्त कहते हैं, अहंकार ही वह पर्दा है जो हमें अपने वास्तविक स्वरूप से मिलने नहीं देता. हमारा छोटा  मन अहंकार के बलबूते पर ही अपने पाँव जमाये है, जबकि बड़ा मन अर्थात आत्मा स्वयंभू है, जैसे एक कमरे के भीतर का स्थान दीवारों पर निर्भर है पर बाहर का अनंत स्थान है ही. वास्तव में तो भीतर का स्थान भी उसी अनंत का ही एक भाग है, इसी तरह छोटा मन भी विशाल मन का ही भाग है पर अहंकार कहता है, यदि तुम मुझे त्याग दोगे तो तुम्हारे पास शेष ही क्या रह जायेगा, तुम्हारा अंत ही हो जायेगा. क्या तुम्हें अपनी पहचान नहीं बनानी, और इसी तरह अहंकार की बातों में आकर हम  अपने आपको धन, पद, सम्मान और समृद्धि के बल पर बड़ा सिद्ध करना चाहते हैं. हमें यह ज्ञात ही नहीं हो पाता भीतर अनंत शून्य है जिसे भरने की लाख कोशिश करें वह सदा रिक्त ही रहेगा. जब एक न एक दिन व्यक्ति इस दौड़ में हार जाता है तब वह सच्चे अर्थों में ईश्वर के निकट जाता है, अपना अहंकार गला कर जब वह स्वयं की दीनता को स्वीकार कर लेता है तब भीतर से एक अनोखी शांति का अनुभव उसे पहली बार होता है जो दुनिया का कोई धन या पद नहीं दे सकता.  वही मानव का अपने आप से परिचय है. इस शांति के भी पार परमात्मा का अनंत साम्राज्य है जहाँ शास्त्र और गुरुजन हमें ले जाना चाहते हैं. 

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