कहीं युद्ध, कहीं भयावह आर्थिक संकट, कहीं महामारी का बढ़ता हुआ प्रकोप तो कहीं राजनीतिक अस्थिरता, विश्व के अनेक देश आज इन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। अपने देश में देखें तो किसी राज्य में राजनीतिक हिंसा, कहीं धार्मिक कट्टरता के कारण उपजा द्वेष कहीं नक्सलवाद, कहीं अलगाववाद किंतु इन सबके मध्य भी अध्यात्म और योग के कारण एक समरसता की भावना भी छायी है, जिसके स्वर मंद चाहे हों पर बहुत शक्तिशाली हैं। भारत का बढ़ता हुआ आयात, आर्थिक सम्पन्नता, पड़ोसी देशों को निस्वार्थ सहयोग और कई राज्यों में शांति और विकास की लहर इसकी गवाही देती है। भारत में लोकतंत्र की जड़ें बहुत गहरी हैं, यह सनातन धर्म की पहचान है। मानव जीवन के वास्तविक लक्ष्य को यहाँ का आम आदमी भी जानता है, मोक्ष का विचार यहाँ की हवा में घुला है। यहाँ एक जन्म की बात नहीं की जाती, एक अनंत जीवन हम पीछे छोड़ आए हैं और हम जानते हैं कि आने वाले अनेक जन्मों का सुख-दुःख हमारे आज के कर्मों पर निर्भर है। हर बार श्रेष्ठता की ओर बढ़ना है। कृष्ण की गीता को चाहे सबने न भी पढ़ा हो पर केवल परमात्मा का नाम ही सत्य है, इससे कौन अनभिज्ञ है। भारत की इस संस्कृति का हमें सम्मान करना है और इसकी गूंज सारे विश्व तक पहुँचे इसलिए इसका पालन और विस्तार करना है।
बहुत ही सुन्दर विचार !
ReplyDeleteवैसे अनिता जी, मैं भारत के वर्तमान और उसके भविष्य को ले कर आपके जितना आशावादी नहीं हूँ.
आज हम भ्रष्टाचार के मामले में विश्व के शीर्षस्थ देशों में गिने जाते हैं.
जिसके पास स्वर्ण-लंका नहीं है, जिसके पास लाठी-बल नहीं है, सत्ता के गलियारे में उसका कोई मान-सम्मान नहीं है.
आपने पूर्णतया सही कहा है, किंतु भ्रष्टाचार को रोकना हो तब भी तो हमने अपनी संस्कृति के मूल्यों को बढ़ावा देना होगा, भारत का वर्तमान अन्य देशों की तुलना में काफ़ी स्थिर है, इसलिए भविष्य भी उज्ज्वल होगा, इसके लिए हम सभी को प्रयास करना होगा। सत्ता के गलियारे में भी आज कुछ आस्थावान लोग दिखायी पड़ रहे हैं।
Deleteबहुत बहुत आभार शास्त्री जी!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार!
ReplyDelete"भारत का बढ़ता हुआ आयात, आर्थिक सम्पन्नता, पड़ोसी देशों को निस्वार्थ सहयोग और कई राज्यों में शांति और विकास की लहर इसकी गवाही देती है।"
ReplyDeleteये सत्य है कि-आज से पहले भारत की ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं थी। लेकिन जब कमिया ही देखने की आदत बन चुकी हो तो अच्छाई कहाँ दिखाई देती है।
आपकी ये बात तो और भी अच्छी लगी कि-"भारत की इस संस्कृति का हमें सम्मान करना है और इसकी गूंज सारे विश्व तक पहुँचे इसलिए इसका पालन और विस्तार करना है।"
बहुत ही सुंदर और चिंतनपरक विचार आदरणीय अनीता जी,
सही कहा आपने... सकारात्मकता लिए बेहतरीन सृजन।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर सराहनीय अवलोकन किया है आपने देश की वर्तमान स्थिति का ।
ReplyDeleteरामनवमी की हार्दिक बधाई दीदी ।
कामिनी जी, अनीता जी, व जिज्ञासा जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार!
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