आत्मा में अनेक शक्तियाँ होते हुए भी मानव स्वयं को दुर्बल मानता है, वह जड़ को तो बहुत महत्व देता है पर स्वयं की महिमा से अनभिज्ञ रहता है। जहाँ भी जीवन है वहाँ आत्मा विद्यमान है। परमात्मा की तरह जीव अनादि और अनंत है। चेतना उसका लक्षण है, चेतना को नष्ट नहीं किया जा सकता केवल विस्मृति के पर्दे से उसे आवृत किया जा सकता है। स्वयं में निहित दर्शन शक्ति व ज्ञान शक्ति के द्वारा जीव संसार का ज्ञान प्राप्त करता है । उसके भीतर स्मरण की भी एक शक्ति है जिससे वह जगत के अनेक पदार्थों को उनके उपयोग सहित स्मरण रखता है। आत्मा में सुख को अनुभव करने की भी एक शक्ति है, हमें लगता है सुख बाहर के पदार्थ देते हैं पर कभी तन अस्वस्थ हो तो बाहर के अमूल्य पदार्थ भी सुख नहीं देते। इस आत्मीय सुख का कारण है परमात्मा में असीम श्रद्धा और मन की निर्मलता। जब मन में मोह होता है तो श्रद्धा अचल नहीं रह पाती और सुख तब दुःख में बदल जाता है। आत्मा में शौर्य की भी एक शक्ति है जो जगत में हर परिस्थिति का सामना करने की प्रेरणा देती है। इस शौर्य शक्ति के कारण ही अटल श्रद्धा भी टिकी रहती है।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-03-2022) को चर्चा मंच "कटुक वचन मत बोलना" (चर्चा अंक-4385) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आत्मशक्ति का होना बहुत जरुरी है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
आत्मा के अस्तित्व व शक्तियों पर सूक्ष्म विवेचन ।
ReplyDeleteसुंदर पोस्ट, आध्यात्म से शोभित।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआत्मशक्ति की सुंदर विवेचना,सादर नमन अनीता जी
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