भय से मुक्ति मिले बिना मानव को विश्रांति प्राप्त नहीं हो सकती। जो कुछ उसके पास है, वह छिन जाने का भय, रिश्तों के टूट जाने का भय अथवा उनके सदा एक सा न बने रहने का भय। दूसरों के मन में अपने प्रति स्नेह व सम्मान को खो देने का भय। समाज में अकेले रह जाने का भय और दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं, इसका भय। असुंदर, अयश, निर्धन, अपकीर्ति, असफल होने का भय; और भी न जाने कितने भय हैं जिनसे मन घिरा रहता है। सबसे बड़ा भय रोग अथवा मृत्यु का है, यह भी मानव मन को जकड़े रहता है। जहाँ भय है वहाँ प्रेम खो जाता है। संत जब ईश्वर से प्रेम करने की बात कहते हैं तो भयभीत व्यक्ति उसका अनुभव नहीं कर पाता, अथवा तो उन क्षणों में नहीं कर पाता जब इनमें से कोई भय मन की ऊपरी सतह पर आ गया है।अधिकतर समय तो ये भय अवचेतन में दबे रहते हैं और इनका भास नहीं होता। कोई परिस्थिति आने पर यदि मन डावाँडोल हो रहा है तो कोई न कोई भय सिर उठा रहा है। ऐसे में एक ही उपाय है इनसे मुक्ति का, साक्षी हो जाना। ये भय हमारे सत्य स्वरूप को छू भी नहीं पाते। जब कोई स्वयं की अनंतता को अनुभव कर लेता है तो सारे भय खो जाते हैं। साधना के द्वारा बार-बार अपने आप में स्थित होना सीखना है, एक दिन जब सारे भय अवचेतन से निकल कर सामने आ जाएँगे और मन में हलचल नहीं होगी उस क्षण हम इनसे सदा के लिए मुक्त हो जाएँगे।
Sunday, January 29, 2023
Monday, January 23, 2023
जीवन इक उपहार सरीखा
Friday, January 20, 2023
माया के जो पार हुआ है
Thursday, January 19, 2023
पूर्णमद: पूर्णमिदं
परमात्मा सर्वत्र है, हर काल में है; इस तरह वह हमारे भीतर भी है और बाहर भी, इस समय भी है। वह सर्वशक्तिमान है। अनंत प्रेम का सागर है। हमारा मन यदि उसमें से कुछ ग्रहण कर भी ले तो भी उसका कुछ घटेगा नहीं, यदि हम उसे अपना सारा प्रेम दे भी दें तो उसमें कुछ बढ़ेगा नहीं।अनादि काल से इस सृष्टि में हज़ारों जीव आए और उसके प्रेम के भागी बने पर वह ज्यों का त्यों है। हमारा मन यदि संकुचित है, लघु है, संकीर्ण है तो उसमें कम ही समाएगा। छोटा मन अहंकार का प्रतीक है और विशाल मन आत्मा का। संतों का मन विशाल होता है, वे मन को अनंत कर लेते हैं और सारा का सारा अनंत उसमें समा जाता है, फिर भी अनंत में कुछ घटता नहीं। वेदों में कहा गया है, संकीर्णता में दुःख है, विशालता में सच्चा विश्राम है। ऐसा ही शान्ति, शक्ति, सुख, ज्ञान, पवित्रता व आनंद के साथ है। वह इन सबका अजस्र स्रोत है और मानव को देने को तत्पर है। मन में यदि उन्हें पाने की चाह हो तो आत्मा के ये गुण अपने आप प्रकट होने लगते हैं।
Sunday, January 15, 2023
चेतन, अमल, अजर अविनाशी
संत कहते हैं “मैं कौन हूँ” इस सवाल का जवाब खोजने जाएँ तो भीतर एक गहन शांति के अतिरिक्त कुछ जान नहीं पड़ता। एक ऐसा भान होता है, जो अनंत है, विस्तीर्ण है, जो होना मात्र है, केवल शुद्ध चिन्मय तत्व है। वहाँ भौतिकता का लेश मात्र भी नहीं।जो मात्र जानने वाला है। न कर्ता है न भोक्ता , न उसे कुछ चाहिए, न उसे निज सुख के लिए कुछ करना है। जो स्वयं पूर्ण है, आनंद स्वरूप है, जो परमात्मा का अंश है। जो हर जगह है, हर काल में है। जिसका कभी नाश नहीं होता। जो सहज ही उपलब्ध है पर जिसके प्रति हम आँख मूँदे हैं। जो मन का आधार है। जो मन को विश्राम देता है। जो प्रेम, शांति, शक्ति व ज्ञान का स्रोत है। वही आत्मा, परमात्मा और गुरू है।
Friday, January 13, 2023
हर उत्सव यह याद दिलाता
सत्संग, सेवा, साधना और स्वाध्याय इन चार स्तम्भों पर जब जीवन की इमारत खड़ी हो तो वह सुदृढ़ होने के साथ-साथ सहज सौन्दर्य से सुशोभित होती है. उत्सव बार-बार इसी बात को याद दिलाने आते हैं. हर उत्सव का एक सामाजिक पक्ष होता है और धार्मिक भी, यदि उसमें आध्यात्मिक पक्ष भी जोड़ दिया जाये तो उसमें चार चाँद लग जाते हैं. मकर संक्रांति ऐसा ही एक उत्सव है. इस समय प्रकृति में आया परिवर्तन हमें जीवन के इस अकाट्य सत्य की याद दिलाता है कि यहाँ सब कुछ बदल रहा है, भीषण सर्दी के बाद वसंत का आगमन होने ही वाला है. छोटे-बड़े, धनी-निर्धन आदि सब भेदभाव भुलाकर जब एक साथ लोग अग्नि की परिक्रमा करते हैं तो सामाजिक समरसता का विकास होता है. तिल, अन्न आदि के दान द्वारा भी सेवा का महत कार्य इस समय किया जाता है. जीवन की पूर्णता का अनुभव उत्सव के माहौल में ही हो सकता है. कृषकों द्वारा नई फसल को प्रकृति की भेंट मानकर उसका कुछ अंश अग्नि को समर्पित करने की प्रथा हमें निर्लोभी होना सिखाती है. मकर संक्रांति का त्यौहार पूरे देश में भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है, हर उत्सव पर हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, उसके करीब जाते हैं, मन के उल्लास को जगाते हैं, उत्सव हमें मन को इतर कार्यों से खाली करने का प्रयास है, अथवा तो जो भी अच्छा-बुरा जीवन में हो उसे समर्पण करके पुनः नए हो जाने का संदेश देता है. उत्सव में एक साथ मिलकर जब आनंद मनाते हैं, तो ऊर्जा का संचार होता है, भीतर एक नया जोश भर जाता है. क्षण भर के लिए ही भौतिक देह का भाव मिटने लगता है, सारे भेद गिर जाते हैं और उस अव्यक्त की झलक मिल जाती है.
Tuesday, January 10, 2023
तीन गुणों के पार हुआ जो
यह सृष्टि तीन गुणों से संचालित होती है। जब तीनों गुण साम्यावस्था में आ जाते हैं तब सृष्टि अव्यक्त हो जाती है। हमारे भीतर भी ये तीन गुण हर क्षण अपना कार्य करते रहते हैं। जब सत गुण की प्रधानता होती है, मन के भीतर हल्कापन, स्पष्टता व सहज आनंद की अनुभूति होती है। रजोगुण हमें क्रियाशील बनाता है, इसकी अधिकता मन के चंचल व अस्थिर होने का कारण है। तमोगुण प्रमाद, आलस्य, निद्रा को लाता है। तीनों गुणों के सामंजस्य से जीवन भली भाँति चलता है। यदि प्रातः काल सतो गुण प्रधान हो, दिन में रजो तथा रात्रि के आगमन के साथ तमो गुण बढ़ जाये तो साधना, कर्म व विश्राम तीनों होते रहेंगे और स्वास्थ्य बना रहेगा। दिन में तमो गुण बढ़ने से कार्य नहीं होगा, रात्रि में रजो बढ़ जाए तो नींद नहीं आएगी। इन गुणों का आपसी ताल-मेल सधना योग का फल है। योग साधना क्रियाशील होने के साथ-साथ हमें पूर्ण विश्राम करना भी सिखाती है। साक्षी की अवस्था में आत्मा इन तीनों गुणों के पार चला जाता है, वह इनसे प्रभावित नहीं होता। वह परम विश्राम की अवस्था है जिससे लौटकर बुद्धि प्रज्ञावान हो जाती है, जिसे कृष्ण स्थितप्रज्ञ कहते हैं।
Wednesday, January 4, 2023
मन जो अमन हुआ टिक जाए
Tuesday, January 3, 2023
मुक्ति की जो करे कामना
सुख यानि शुभ आकाश, अपने आसपास का वातावरण जब सकारात्मक तरंगे लिए हुए हो, उसमें कोई विकार न हो। किंतु जहाँ शुभ है, वहाँ अशुभ भी हो सकता है, चाहे उस समय प्रकट नहीं हो रहा। जहाँ सकरात्मकता है, वहीं नकारात्मकता भी छिपी है। इसलिए सुख की कामना का त्याग ही मुक्ति है। इस वर्ष हमारा मूलमंत्र सुख के स्थान पर मुक्ति होना चाहिए। मुक्ति का अर्थ है, पूर्ण स्वतंत्रता, दो के द्वन्द्व से पूरी आज़ादी ! अब न सुख की तलाश है न शुभ-अशुभ का भय ! मुक्ति का अर्थ है मन के पूर्वाग्रहों, धारणाओं, कल्पनाओं, आशंकाओं से मुक्ति ! एक ऐसे स्थान में रहने की कला जहाँ पूर्ण रिक्तता है। जहाँ इस जगत का स्रोत है। जहाँ से आवश्यक ज्ञान सभी जीवों को प्राप्त होता है, क्योंकि वह ज्ञान का भी स्रोत है। आकाश, वायु, अग्नि, जल व पृथ्वी पाँच तत्व भी वहीं से उपजे हैं। मुक्ति की कामना हमारे शास्त्रों का मूल मंत्र है। मोक्ष की अवधारणा केवल भारत में ऋषियों द्वारा की गयी है, यह परम कामना है। इसका अर्थ है छोटे संकीर्ण मन की दासता से मुक्ति और विशाल मन के साथ एक होने की कला या विज्ञान; यह व्यक्ति को पूर्ण बनाती है।