संत कहते हैं “मैं कौन हूँ” इस सवाल का जवाब खोजने जाएँ तो भीतर एक गहन शांति के अतिरिक्त कुछ जान नहीं पड़ता। एक ऐसा भान होता है, जो अनंत है, विस्तीर्ण है, जो होना मात्र है, केवल शुद्ध चिन्मय तत्व है। वहाँ भौतिकता का लेश मात्र भी नहीं।जो मात्र जानने वाला है। न कर्ता है न भोक्ता , न उसे कुछ चाहिए, न उसे निज सुख के लिए कुछ करना है। जो स्वयं पूर्ण है, आनंद स्वरूप है, जो परमात्मा का अंश है। जो हर जगह है, हर काल में है। जिसका कभी नाश नहीं होता। जो सहज ही उपलब्ध है पर जिसके प्रति हम आँख मूँदे हैं। जो मन का आधार है। जो मन को विश्राम देता है। जो प्रेम, शांति, शक्ति व ज्ञान का स्रोत है। वही आत्मा, परमात्मा और गुरू है।
सारगर्भित।
ReplyDeleteस्वागत व आभार!
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