संत कहते हैं आत्मा कर्ता नहीं है, तब पाप, पुण्य कैसे उसे बांध सकते हैं। आत्मा द्रष्टा व ज्ञाता है। मन, वाणी व देह प्रकृति में हैं, वे प्रकृति के अनुसार कर्म करते हैं। सात्विक, राजसिक अथवा तामसिक प्रकृति के अनुसार भिन्न-भिन्न योनियों में जाते हैं और आत्मा उनके साथ जाता हुआ प्रतीत होता है। आकाश का चंद्रमा जैसे झील में हिलता हुआ लगता है पर वास्तव में वह सदा स्थिर है। जैसे अग्नि का संग पाकर लोहा अग्नि का रूप धर लेता है पर संग छूटते ही शीतल होकर अपने रूप में आ जाता है, वैसे ही देह व मन आत्मा की निकटता से चेतन प्रतीत होते हैं। गहरी नींद में न देह को अपना भान रहता है न ही मन को, आत्मा फिर भी रहता है और जाग कर वही कहता है रात को नींद अच्छी आयी। ध्यान में जागते हुए देह और मन के पार जाकर आत्मा का अनुभव किया जा सकता है।
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