अहंकार स्वयं को बचाए रखने के लिए तर्क का आश्रय लेता है। प्रेम हर तर्क से ऊपर है, वह आत्मा का सहज गुण है। प्रेम को मरने का भय नहीं होता, वह शाश्वत है। जहाँ प्रेम है वहाँ अभय है। अहंकार आहत होता है तो प्रतिशोध लेना चाहता है, प्रेम पिघल जाता है, वह दीनता का अनुभव करता है। प्रेम में भी विरह की पीड़ा है पर वह पीड़ा मन को शुद्ध करती है। अहंकार से उत्पन्न पीड़ा दुःख का कारण होती है। संत कहते हैं जब भी भीतर दुःख हो शरण में आ जाना चाहिए। अहंकार में व्यक्ति स्वयं प्रमुख होता है, प्रेम में सामने वाला मुख्य होता है, उसकी प्रसन्नता में ही प्रेमी अपनी ख़ुशी देखता है।
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