१२ अक्तूबर २०१७
साधक की नजर किस तरफ है सारा
दारोमदार इसी पर है. क्या हम मात्र सुख के अभिलाषी हैं अथवा सुख के साथ-साथ
संतुष्टि के भी. सुख क्षणिक है और उसकी कीमत चुकानी होगी. संतुष्टि समझ से आती है
और दीर्घकालिक होती है. संतों और सदगुरुओं के वचनों से प्राप्त समझ जब जीवन में
चरितार्थ होने लगती है तब जीवन नदी की शान्त धारा की तरह एक दिशा में प्रवाहित
होने लगता है. जिसके तटों पर विश्राम भी किया जा सकता है और जिसके शीतल जल में
सहजता से तैरा भी जा सकता है. जब सुख की तलाश में स्वयं को खपाकर और हाथ में दुःख
के खोटे सिक्के पकड़ कर संसार सागर में लहरों के साथ ऊपर-नीचे डोलते रहने को ही
जीवन समझ लिया जाता है, जीवन संघर्ष बन
जाता है.
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