२८ फरवरी २०१९
संत व शास्त्र हमें बताते हैं अहंकार के पर्दे के पीछे ही छिपा
है हमारा शाश्वत स्वरूप, जिसे पहचान कर हम अखंड शांति का अनुभव कर सकते हैं, जो
हमें पूर्ण स्वाधीनता का अनुभव कराता है. एक स्वाधीन व्यक्ति सहज ही आनंदित रहता
है. हमारी अशांति का कारण क्या है, हम किन-किन बन्धनों को अनुभव करते हैं, और क्या
है जो हमें सहज रहने से रोकता है, इन प्रश्नों के उत्तर खोजना अहंकार से मुक्त
होने का प्रथम कदम है. कई बार हम स्वाभिमान और अहंकार के भेद को नहीं समझते इसलिए
अहंकार को बढ़ाए चले जाते हैं, यह जानते हुए भी कि ऐसा करने से हम अपने लक्ष्य से
दूर ही जाते हैं. स्वयं को ऋषियों की परंपरा का वाहक मानना, परमात्मा की सृष्टि का
एक अंग मानना और शुद्ध आत्मा मानना स्वाभिमान है, जिसकी रक्षा हमें करनी है. स्वयं
को पद, धन, हुनर, जाति, लिंग, पन्थ से जोड़कर एक सामान्य व्यक्ति मानना अहंकार है. यदि
हमारा पद बड़ा है, धन ज्यादा है, हम विभिन्न कलाओं को जानते हैं, हम किसी विशिष्ट
पन्थ के अनुयायी हैं, तो हम अपने से कम पद वाले, कम धनी व्यक्ति को हीन मानकर स्वयं
को विशेष अनुभव करेंगे, यही अहंकार है जो हमें सहजता से दूर रखता है. मानव होने के
नाते सभी परमात्मा का अंग हैं, सभी मूलतः शुद्ध आत्माएं हैं, ऐसा भाव भीतर रखते
हुए बाहर का व्यवहार चलाना है. ऐसा करने से बाहरी भेद बना ही रहेगा, लेकिन मन सदा एकत्व
का अनुभव करेगा और मुक्त रहेगा.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रीय विज्ञान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete