Monday, February 25, 2019

सकल पदारथ हैं जग माहीं


२६ फरवरी २०१९ 
संत कवि तुलसीदास ने कहा है, ‘सकल पदारथ हैं जग माहीं, कर्महीन नर पावत नाहीं’. इसका एक अर्थ यह भी है कि एक कर्मशील व्यक्ति को, जो भी वह चाहे मिल सकता है. हम सभी ने कभी जो चाहा था वह आज हमें मिला है, यदि हम अपनी वर्तमान स्थति से प्रसन्न नहीं है तो इसका अर्थ हुआ हमने ही कुछ ऐसा चाहा था जो उपयुक्त नहीं था. हमें क्या चाहना है यदि इसकी समझ ही नहीं होगी तो भविष्य में भी हम अपनी प्राप्ति से संतुष्ट नहीं हो सकते. हर मनुष्य के भीतर तीन शक्तियाँ प्रतिपल काम करती हैं, जानने की शक्ति, इच्छा करने की शक्ति और कर्म करने की शक्ति. हमारा बुद्धि पक्ष अर्थात जानने की क्षमता यदि सही नहीं है, तो हम गलत इच्छा का चुनाव कर लेते हैं और फिर उसी दिशा में हमारे कर्म भी होने लगते हैं. जानकारी और सूचना को ही हम यदि ज्ञान समझते हैं तो यह भी भूल है. ज्ञान का अर्थ है सही-गलत का विवेक, सत्य-असत्य का विवेक और शाश्वत–नश्वर का विवेक. हमारी दृष्टि यदि शुभ, सत्य और शाश्वत का वरण करती है तो जीवन में आनंद के फूल सहज ही खिलेंगे.

3 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कुछ बड़ा हो ही गया : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  2. आप ये बताने की कृपा करें ये चौपाई किस कांड से है कहाँ है

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