Monday, February 25, 2019

बुद्धियोग में टिक जाये मन


२५ फरवरी २०१९ 
भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं, कर्म करो किन्तु फल की इच्छा मत करो. बुद्धि को समता में स्थित करके कर्म करो. इस पर अर्जुन ने कहा, यदि बुद्धि का महत्व अधिक है तो हम कर्म ही क्यों करें,  कृष्ण ने कहा क्योंकि कर्म किये बिना कोई पल भर भी नहीं रह सकता. स्वभाव के वशीभूत होकर हर व्यक्ति कोई न कोई कर्म करता ही है, यदि वह अपने कर्म का फल भी चाहता है तो कर्म उसके लिए बंधन बन जाता है. फल मिलने से पूर्व उसका मन समता में स्थित नहीं रह पाता और फल यदि सुखद हुआ तो वह अपने भीतर लोभ जगाता है दुखद हुआ तो शोक करता है. लोभ और शोक दोनों ही मन के विकार हैं. इसके विपरीत फल की इच्छा त्याग कर कर्म करने से मन विकारों से मुक्त होता है, भीतर स्थिरता का अनुभव होता है. भक्त सभी कर्मों को भगवान की पूजा मानकर करता है और ज्ञानी कर्ताभाव से मुक्त होकर कर्म करता है. ज्ञानी स्वयं को आत्मा जानकर अकर्ता भाव में स्थित हो जाता है और प्रकृति में कर्म हो रहे हैं ऐसा जानकर सदा समता में रहता है.

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