समय परिवर्तन का ही दूसरा नाम है.
जब मन थम जाता है, भीतर एक शांति और स्थिरता का अनुभव होता है, लगता है समय ठहर गया
है. सारी सृष्टि मन से ही उत्पन्न होती है. मन में विचार जब तेजी से चल रहे हों,
लगता है समय भी भाग रहा है. मन द्वारा किया गया परमात्मा का चिंतन हमें परमात्मा
से दूर ही करता है, उसके निकट जाना हो तो हर चिंतना का त्याग करना होगा. शब्दों से
जिसे जाना ही नहीं जा सकता ऐसा वह परम अस्तित्त्व है. इसीलिए वह समयातीत भी है और
शब्दातीत भी, और उसका होना या न होना शब्दों द्वारा सिद्ध भी नहीं किया जा सकता और
खंडित भी नहीं किया जा सकता.
व्यवहारिक चिंतन सुंदर पोस्ट।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (0५ -१०-२०१९ ) को "क़ुदरत की कहानी "(चर्चा अंक- ३४७४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत सुंदर संदेश अनिता जी।
ReplyDeleteसादर।