Monday, May 11, 2020

समता में जो मन टिक जाये

अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय इन पांच कोशों के भीतर हमारा वास है. जब चेतना अन्नमय कोष से जुड़ी होती है उसे जरा-मरण का भय लगता है, प्राणमय कोष में रहकर भूख-प्यास का अनुभव होता है. मनोमय कोष के कारण हम शोक-मोह का अनुभव करते हैं, विज्ञानमय कोष ही हमारे सुख-दुःख के अनुभव का कारण है. आनंदमय कोष आत्मा का निकटस्थ है, इसमें ब्रह्म का आनन्द है किन्तु यह सदा उपलब्ध नहीं होता. जब साधक साधना के द्वारा अन्य चार कोशों के पार चला जाता है तब इसका अनुभव करता है. यहाँ असीमता का अनुभव होता है तथा विषाद और भय का लोप हो जाता है. ध्यान और समाधि के द्वारा इसमें टिकने का सामर्थ्य बढ़ता है, तब सुख-दुःख में समता प्राप्त होती है, जिसे कृष्ण योग में स्थित होना कहते हैं. मानव जीवन में ही इस समता को प्राप्त करना सम्भव है. 

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