Wednesday, May 13, 2020

जो गुरुवाणी पर करे मनन


भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं संशय आत्मा विनश्यति, अर्थात जिस व्यक्ति में संशय करना  उसका स्वभाव ही बन गया है वह कभी सुख को उपलब्ध नहीं हो सकता. संसार विश्वास पर चलता है, उसके बिना जीवन में एक ठहराव आ जाता है. संशय बुद्धि करती है और श्रद्धा भावना का क्षेत्र है. अपने-अपने स्थान पर जीवन में दोनों की आवश्यकता है. यदि भीतर श्रद्धा और संशय ऊपर-ऊपर है तो व्यक्ति किसी दिन ज्ञान को उपलब्ध हो सकता है. श्रद्धा के बिना केवल संशय करना अपने जीवन को आगे बढ़ने से रोकना ही है. श्रद्धावान को ही ज्ञान मिलता है, ऐसा ज्ञान जिसके आने से भीतर शांति का अनुभव होता है.  ठहरी हुई झील में भी कुछ तरंगें होती हैं पर ज्ञान की उपलब्धि से ऐसी चिर शांति भीतर उत्पन्न  हो जाती है जो कभी नष्ट नहीं होती.

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