ध्यान एक बीज के रूप में हमारे भीतर प्रकृति द्वारा प्रदान किया जाता है. जन्म के साथ ही शिशु को यह उपहार मिलता है, इसमें वह संभावनाएं छुपी होती हैं जिन्हें वह भविष्य में प्राप्त कर सकता है. इस बीज को जब मन की भूमि में बोया जाता है, इसे श्रद्धा का जल मिलता है और विश्वास की धूप तो यह अंकुरित होने लगता है. धीरे-धीरे यह पौधे से वृक्ष बनता है एक दिन इस पर प्रेम और भक्ति के पुष्प लगते हैं, जिनकी सुवास से मन का कोना-कोना भर जाता है. ध्यान का यह बीज अनेकों के जीवन में बिना अंकुरित हुए ही रह जाता है, तब जीवन रूखा-सूखा ही रहता है. हो सकता है ऐसे लोग बुद्धि के द्वारा श्रेष्ठ पदों को प्राप्त कर लें पर उनके अंतर में बसंत नहीं आता, बाहर से उसे लाने के उपाय करने पड़ते हैं. जीवन में कृत-कृत्यता का अनुभव नहीं होता, वह सन्तोष नहीं आता जिसे पाकर सब धन फीके लगते हैं. गुरुजन ध्यान की इतनी महिमा इसीलिए करते हैं, इसके नियमित अभ्यास से हमारे भीतर के द्वार खुलने लगते हैं, एक गहन शांति और स्थिरता का अनुभव मन को होता है. इस अनिश्चतता भरे वातावरण में यदि मन सदा डांवाडोल होता रहे तो मानव को चैन कैसे मिल सकता है. इसलिए क्यों न आज से ही हम ध्यान को हम अपने जीवन का एक हिस्सा बनाएं.
ज्ञानवर्धक सन्देश।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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