युद्ध के प्रति जहाँ मन में उन्माद जगाया जाता हो. हिंसा के प्रति आकर्षण को वीरता का प्रतीक मान लिया जाता हो, अहंकार का झूठा प्रदर्शन किया जाता हो. ये सभी एक दिशाहीन समाज की निशानियाँ हैं. जहाँ नेतृत्व खोखला है, कोई आदर्श भी सम्मुख नहीं है, अजीब सी रिवायतें और दकियानूसी विचारधारा को प्रश्रय दिया जाता हो, वह समाज दया का पात्र है. भारत की हजारों साल पुरानी संस्कृति और अनमोल साहित्य का अकूत भंडार होते हुए भी जब सत्य और अहिंसा को भुलाकर नफरत की आग को हवा दी जाती हो तो उसे विडंबना ही कहा जा सकता है. हजार दरिया भी मिलकर नफरत की आग को बुझा नहीं सकते, जब समझ का पानी सूख जाता है तो वहां कोई चमत्कार ही अमन की बारिश कर सकता है. जब मंशा सँवारने की होती है तो लोग व्यर्थ पड़े पत्थरों और ठीकरों से भी बगीचे बना लेते हैं लेकिन जहाँ इरादा ही अलगाव का हो तो अमृत भी विष बन जाता है. जब रिश्तों की बुनियाद ही खोखली होती है तो तथाकथित मित्रों को शत्रु बनते देर नहीं लगती. आज आवश्यकता है आपसी सौहार्द को जगाने के लिए सार्थक संवाद हो, विश्वास कायम करने के लिए भावनाओं की जगह समझदारी को प्राथमिकता दी जाये.
सदैव की भांति सार्थक लेख।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteसार्थक और सशक्त लिखा आपने 👍
ReplyDeleteस्वागत व आभार सदा जी !
Deleteबहुत बहुत आभार शास्त्री जी !
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