महामारी के इस काल में सब कुछ अनिश्चतता के दौर से गुजर रहा है. एक भय और असुरक्षा की भावना पहले से बढ़ गयी लगती है. ऐसे में अध्यात्म का आश्रय लेकर हम सहज ही अपने मन को तनाव से मुक्त रख सकते हैं. ‘मैं’ और ‘मेरा’ के सीमित दायरे से निकाल कर अध्यात्म हमें औरों के प्रति संवेदनशील होना सिखाता है. तनाव होता है स्वयं के बारे में सोचते रहने से, यदि हम अपनी सोच में बदलाव ले आएं और यह विचारें कि क्या इस दौर में हम अन्यों की किसी भी तरह की मदद कर सकते हैं, तो हमें अपनी चिंता करने का समय ही नहीं मिलेगा. जिस परम शक्ति ने इस विराट सृष्टि का निर्माण किया है, उसके प्रति समर्पण करने से भी मन भय मुक्त हो जाता है. सुबह और शाम आधा घण्टा ध्यान करने से भी हम मन में स्थिरता और शांति का अनुभव कर सकते हैं. ध्यान हमें ऊर्जावान बनाता है, हमारा छोटा मन विशाल मन के साथ जुड़ कर गहन विश्राम का अनुभव कर सकता है, जो मन के साथ-साथ तन को भी स्वस्थ रखने में सहायक है.
सच है
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (18-09-2020) को "सबसे बड़े नेता हैं नरेंद्र मोदी" (चर्चा अंक-3828) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सच औऱ सार्थक बात
ReplyDeleteआप गागर में सागर भर देती हैं अनीता जी, बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDelete‘मैं’ और ‘मेरा’ के सीमित दायरे से निकाल कर अध्यात्म हमें औरों के प्रति संवेदनशील होना सिखाता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक...
स्वागत व आभार !
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