दुनिया में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। मौत की खबर अब किसी को पहले की भांति नहीं कंपाती। मृत्यु एक संख्या बनकर रह गई है। मृत व्यक्तियों का अंतिम संस्कार भी कई बार अस्पताल द्वारा ही अजनबियों के हाथों कर दिया जाता है। सफेद बैगों में बंद वे तन अपनों के अंतिम स्पर्श व दर्शन से भी वंचित हो जाते हैं।कुछ दिन पहले उनके भीतर भी धड़कते दिल थे, उन्हें भी यकीन था कि कोरोना उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। वे भी शक्ति के एक पुंज थे और उसी अनंत स्रोत से आए थे। मानव को अब जागकर देखना होगा कि जीवित रहना कितना सरल है यदि वह हवा को मैला न करे। मिट्टी से जुड़ा रहे. कीट नाशक दवाओं का अंधाधुंध प्रयोग न करे। दूध में रसायन न मिलाए। सब्जियों और फलों को इंजेक्शन न लगाए। समुद्री जीवन हो या बर्फीले स्थानों के प्राणी और वनस्पति, कहीं भी मानव की नीतियों का गलत असर न हो। जीवन का स्रोत तो एक ही है, यदि प्रकृति के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार होगा तो वह देख पाएगा जीवन कितना सुंदर है। झरनों का संगीत, वर्षा की रिमझिम, हवाओं का स्पर्श, नदियों के तट की सुषमा सभी को अनुभव करके दैवी गुणों का विकास हो तो प्रकृति का शांत रूप ही प्रकट होगा।
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