आज बापू का जन्मदिन है और शास्त्री जी का भी. वर्तमान पीढ़ी को इन दोनों महापुरुषों से बहुत कुछ सीखना है. दोनों का जीवन सादगी भरा था, दिखावे और बनावट के लिए उसमें कोई स्थान नहीं था. पर्यावरण के प्रति इतना लगाव था कि आश्रम के बाहर बहती नदी के बावजूद गांधी जी थोड़े से पानी से अपना काम चलाते थे. लिखने के लिए कागज का पूरा उपयोग करते, यहां तक कि छोटे-छोटे पुर्जों पर भी लिखने में उन्हें संकोच नहीं होता था. मितव्ययता आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है, जब की देश और दुनिया मंदी के दौर से गुजर रही है, हमें अपने विलासिता पूर्ण खर्चों को घटाकर उनकी सहायता करनी चाहिए जिनके पास कुछ भी नहीं है या बहुत कम है. किसानों के प्रति दोनों के मन में सम्मान था, वे उन्हें अन्नदाता कहते थे. किसानों की आय बढ़े, वे शिक्षित हों तथा जमींदारों के चंगुल से बचें इसके लिए गाँधी जी ने बहुत काम किया. शास्त्री जी ने तो ‘जय किसान’ का नारा ही दिया था. हिंसा के इस दौर में भी गाँधी जी प्रासंगिकता बढ़ जाती है, वे मन, वचन, काया किसी भी प्रकार की हिंसा को पाप का मूल समझते थे. उनके जीवन में हास्य-विनोद का भी बहुत बड़ा स्थान था, वह कहते थे हँसी मन की गाठों को खोल देती है. वह मानव जीवन को एक बड़े उद्देश्य के लिए मिला हुआ अवसर मानते थे. उनका कहना था शिक्षा का काम है छात्र या छात्रा के अंदर छुपी सभी प्रकार की शक्तियों को बाहर लाना, जो शिक्षा ऐसा नहीं करती वह सफल नहीं है. बचपन से ही बालकों को चरित्र निर्माण की शिक्षा मिले जिससे वे जीवन में आने वाली किसी भी बाधा से घबराये नहीं, ऐसी शिक्षा के वह पक्षधर थे. आज के दिन हमें अपनी भावी पीढ़ी को उन आदर्शों और मूल्यों के बारे में बताना चाहिए जिसके लिए बापू और शास्त्री जी ने अपना जीवन ही दे दिया.
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-१०-२०२०) को ''गाँधी-जयंती' चर्चा - ३८३९ पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
गांधी जी एवं शास्त्री जी... दोनों महापुरुषों का जन्म एक ही दिन इसलिये दोनों को सम्मान आवश्यक होता है... और यह लेख इसमें पूर्णतया सफल रहा है...
ReplyDeleteसुन्दर आलेख अनिता जी!
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