जीवन जब यांत्रिक होने लगता है, तब मन में एकरसता छा जाती है. प्रकृति नित्य नवीन रूप धर कर आती है, इसलिए सदा इतनी मनमोहक लगती है. मानव मन नित्य की एक सी दिनचर्या से ऊब जाता है. उत्सव आकर इस एकरसता को तोड़ते हैं. विशेष तौर पर महामारी के इस काल में जब कहीं आना-जाना भी आशंकित कर देता हो तब घर में सुबह-शाम आरती के स्वर गूँजें, सात्विक किन्तु स्वादिष्ट भोजन बने और सुंदर पौराणिक कथाओं का पाठ हो तो हृदय में एक उल्लास का जन्म होना स्वाभाविक है. योग साधना के द्वारा पार्वती ने शिव को प्राप्त किया और पार्वती के प्रति प्रेम के कारण शिव सन्यासी का एकाकी जीवन त्यागकर गृहस्थ बने. इसका तात्विक अर्थ देखें तो पता चलता है योगसाधना के द्वारा मन आत्मा को प्राप्त करता है और आत्मा अकर्ता होता हुआ भी प्रेम के कारण भीतर से मन को निर्देशित करने वाला साथी बनने को तैयार हो जाता है. अभी हमारे भीतर शिव तत्व सोया हुआ है, निरपेक्ष है, जब मन की ऊर्जा सात्विक बनेगी, तब उस तत्व को जागना ही होगा और प्रेम व आनंद से मन भर जायेगा. नवरात्रि का पर्व भी भरत के अन्य पर्वों की तरह यही गूढ़ संदेश लेकर आता है.
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (21-10-2020) को "कुछ तो बात जरूरी होगी" (चर्चा अंक-3861) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आदारणीया अनिता जी, नमस्ते 🙏!बहुत अच्छा लेख है। साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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