अतीत में जो भी अच्छे-बुरे कर्म हमसे हुए हैं, उसके संस्कार मन पर पड़े हैं तथा उनके फल सुख-दुख के रूप में हमें प्राप्त हो रहे हैं। सुख आने पर यदि हम गर्वित न हों, दुख आने पर व्यथित न हों तो अतीत हम पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकता। यदि दुख में दुखी होना और सुख में अभिमान से भर जाना हमारे लिए स्वाभाविक है तो भविष्य भी ऐसा ही होने वाला है। अतीत जब पत्थर बन कर राह में आ जाए तो वर्तमान का दर्शन हमें होता ही नहीं। संत कहते हैं भूख-प्यास और नींद के अलावा वर्तमान में कौन सा दुख है, सारे मानसिक दुख व चिंता अतीत के ही हैं, और यदि हमारा मन किसी भी कारण से परेशान रहता है तो अतीत के हाथों वह जकड़ा हुआ है। वर्तमान का क्षण निर्दोष है, परमात्मा की कृपा का अनुभव सदा वर्तमान में ही होता है। आज यदि हम हर कर्म को सजग होकर करते हैं तो पुराने संस्कार क्षीण पड़ जाएंगे और शुभ कर्मों के संस्कार पड़ेंगे, यही मुक्ति का मार्ग है।
उपयोगी सन्देश।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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