आज दशहरा है,
हजारों वर्षों से असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक यह पर्व मानव को जीने का सही पथ
दिखाता आ रहा है। रावण के दस सिर उसके अहंकार के प्रतीक हैं और राम की विजय उनके
आदर्श की प्रतीक है। अब हमें यह निश्चय करना है कि जिस अहंकार का एक दिन नाश ही होना है उसे प्रश्रय
दें अथवा अपने मूल्यों पर दृढ़ रहकर एक ऐसे जीवन का निर्माण करें जो युगों-युगों से
मानव का आदर्श बना हुआ है। अहंकार व्यक्ति को सबसे तोड़ता है, पहले रावण अपने भाई
से दूर हो गया फिर अपनी पत्नी मंदोदरी से दूर हो गया, यहाँ तक कि अंतत: वह जगत से
ही चला गया। रामायण की कथा अपने भीतर न जाने कितने संदेश छुपाये है। आज जब हर कोई
महामारी के भय से आक्रांत है, समाज को मिलजुल कर एकदूसरे का सहयोग करते हुए जीने
की कला सीखनी होगी। हम देख ही रहे हैं कि एक व्यक्ति को अपना जीवन यापन करने के
लिए कितने ही लोगों का सहयोग चाहिए। सफाई कर्मचारी, आसपास के दुकानदार, डाक्टर,
दूध-सब्जी विक्रेता, बैंक कर्मचार सीमा पर जवान, मीडिया के लोग, अध्यापक और न जाने
कितने ही व्यक्तियों का सहयोग लेकर हमारा जीवन सुचारु रूप से आगे चल सकता है। हम समाज
का अंश भी हैं और समाज भी हैं, समाज हमसे है और हम समाज से हैं। यदि हर व्यक्ति सभी
के प्रति एक सद्भावना का विचार लेकर जीवन यापन करता है तो वह राम के पथ का अनुगामी
है, यदि किसी भी कीमत पर केवल अपने सुख की कामना करता है तो रावण ही उसका आदर्श है।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-10-2020 ) को "तमसो मा ज्योतिर्गमय "(चर्चा अंक- 3867) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार !
Deleteस्वागत व आभार !
ReplyDeleteक्या खूब कहा है अनीता जी, कि यदि हर व्यक्ति सभी के प्रति एक सद्भावना का विचार लेकर जीवन यापन करता है तो वह राम के पथ का अनुगामी है...वाह
ReplyDeleteअध्यात्म आधारित आलेख बहुत ही सुंदरता से मिलजुल कर कठिनाइयों से उभरने का रास्ता प्रसस्त करता है - - नमन सह।
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