ऋतुओं के सन्धिकाल में नवरात्रि का उत्सव हर वर्ष आता है और वातावरण के प्रति हमारी सजगता को बढ़ाता है. वर्षा ऋतु का अंत हो रहा है और पतझर या शरद का आगमन है. हमारी महान संस्कृति में सामान्य जन को इस संक्रमण काल में सुरक्षित रखने के लिए ही वर्ष में दो नव-रात्रियों का विधान किया गया है. हमारा जीवन तभी सुचारूरूप से चल सकता है जब देह में प्राण शक्ति सबल हो. वर्षा ऋतु में जब सब तरफ सीलन और नमी भर जाती है, उसका असर शरीर व मन पर भी पड़ता है. हमारी शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक ऊर्जा को सन्तुलित करने के लिए ही नौ दिनों के व्रत का विधान शास्त्रों में किया गया है. ग्रहों की स्थिति भी इन दिनों ऐसी होती है कि इन दिनों में किया गया ध्यान और साधन शीघ्र फलित होता है. देवी का हर रूप शक्ति का प्रतीक है, ऐसी शक्ति जो हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है. सात्विक भोजन, नियमित जीवन शैली, स्वाध्याय और ध्यान का अभ्यास हमें न केवल आने वाली सर्दी की ऋतु के लिए ऊर्जा वान बना देगा बल्कि कोरोना जैसी महामारी से सुरक्षित रहने का सरल उपाय भी देगा. इन नौ दिनों में ब्रह्म मुहूर्त में उठकर प्रात: काल से ही हम शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कुष्मांडा, स्कंद माता, कात्यायनी, काल रात्रि, महागौरी, सिद्धिरात्रि आदि नौ रूपों में देवी के एक- एक रूप का प्रतिदिन आह्वान करें और अपने भीतर उसकी उपस्थिति को ध्यान द्वारा अनुभव कर सकें तो नवरात्रि का उत्सव सही अर्थों में हम मनाएंगे.
बहुत बहुत आभार !
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