संत कहते हैं और यह हमारा अनुभव भी है कि ज्ञान मन को मुक्त कर देता है. जब तक हमें किसी बात की पूरी जानकारी नहीं है, मन में संशय बने रहते हैं, पर ज्ञान होते ही मन ठहर जाता है। ठहरे हुए मन में अपने आप ही आनंद का अनुभव होता है, क्योंकि मन का मूल अथवा आत्मा आनंदस्वरूप ही है। आत्मा का ज्ञान पाकर ही बुद्धि भी वास्तव में बुद्धि कहलाने की अधिकारिणी है. उसके पहले मन तो अज्ञान के पाश में बंधा होता है, बुद्धि भी एक अधीनता का जीवन जीती है. बुद्धि मन की आधीन, इन्द्रियों की आधीन, धन, प्रसिद्धि, प्रशंसा की आधीन, मोह, क्रोध, अहंकार की आधीन होती है। इसके अतिरिक्त अवचेतन मन की सुप्त प्रवृत्तियों की अधीनता भी उसे स्वीकारनी पड़ती है. किन्तु आत्मा का ज्ञान होने के बाद जैसे कोई परदा उठ जाता है. मन, बुद्धि स्वयं को हल्का महसूस करते हैं.
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