गुरु व ज्ञान पर्यायवाची शब्द हैं, यदि ऐसा कहें अतिशयोक्ति नहीं होगी। गुरु का हर शब्द गहरे चिंतन-मनन के बाद हुए दर्शन से प्रकटता है। वह जीवन की गुत्थियों को पल में हल कर देता है। चीजें उनके आगे अपने गुहतम स्वरूप में प्रकट होती हैं। शास्त्र उनके ही वचनों से बने हैं। वे ईश्वर के प्रतिनिधि हैं। ईश्वर ने हमें सिरजा है, वह इस जगत का आधार है, वह नहीं चाहता कि आनंद स्वरूप बनाने के बाद मानसिक दुख की हल्की सी रेखा भी हमें छू जाये। वह भीतर से हमें प्रेरित करता है और गुरुज्ञान का अधिकारी बनाता है। मानव को जब अपने अंतर में प्रकाश का अनुभव होता है तो उसे जगत ढक न ले, इसकी व्यवस्था गुरु सिखाता है। नियमित साधना, श्रवण तथा मनन का अभ्यास ही समरसता को बनाये रखने में सहायक है।
No comments:
Post a Comment