कृष्ण को चाहने वाले इस जगत में हजारों नहीं लाखों हैं, या करोड़ों भी हो सकते हैं, किंतु कृष्ण की बात को समझने वाले और उसका स्वयं के भीतर अनुभव करने वाले बिरले ही होते हैं. उनके जीवन के हर पहलू से हमें कुछ न कुछ सीखने को मिलता है. कारागार में जन्म लेना क्या यह नहीं सिखाता कि आत्मा का जन्म देह की कैद में ही सम्भव है. मानव जन्म लिए बिना कोई आत्मा का अनुभव कर ही नहीं सकता. जन्म के बाद वह गोकुल चले जाते हैं, नन्द और यशोदा के यहाँ, अर्थात आत्मअनुभव के बाद नन्द रूपी आनंद की छत्र छाया में ही रहना है और यशोदा की तरह अन्यों को यश बांटते रहना है. बांटने की कला कोई कृष्ण से सीखे, वह मक्खन चुराते हैं ग्वाल-बालों और बंदरों में बांटने के लिए. बांसुरी बजाते हैं यह जताने के लिए कि सृष्टि संगीत मयी है, जीवन में यदि गीत और संगीत न हो तो कैसा जीवन. आज के युग में जीवन को संघर्ष का नाम दिया जाता है, जबकि कृष्ण की परिभाषा है जीवन एक उत्सव है. जन्माष्टमी पर हम कृष्ण के बालरूप को सजाते हैं, संत भी बालवत हो जाते हैं, इसका अर्थ हुआ यदि हमारे भीतर बचपन अभी जीवित है तो हम भी आत्मा के निकट हैं.
शुभकामनाएं
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteशुभकामनाएं!!!🌹🌹🌹🙏🙏🙏
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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