जब हमारी बागडोर परमात्मा के हाथों में आ जाती है तो हम निश्चिंत हो जाते हैं। वह हमें अनेक रास्तों से ले जाता हुआ लक्ष्य तक ले जायेगा, ऐसा विश्वास दृढ़ होने लगता है। यदि हमें किसी के घर जाना है तो उसका पता उससे ही तो पूछेंगे। परमात्मा से मिलना हो तो उसे ही अपने घर का मार्ग बताने देना होगा। बस, पूर्ण भरोसा करना होगा, वह स्वयं ही मार्ग पर ले आएगा। जीवन में ऐसी परिस्थितियों का निर्माण होगा कि सब कुछ एक दिन स्पष्ट हो जाएगा। जब पहाड़ की चोटी पर चढ़ना हो तो मार्ग में उतार-चढ़ाव तो आते ही ही हैं। जो सर्वोच्च है, वहाँ जाने का मार्ग भी सीधा नहीं हो सकता। घुमावदार, उतराई-चढ़ाई वाला मार्ग ही होगा, पर उस पर कोई दृढ़ता से चलता चले तो एक दिन स्वयं को उसके निकट पाएगा। शास्त्र और गुरु के रूप में वह हमारे पास मार्गदर्शक भी भेजता है, जो पल-पल इस पथ पर साधक की सहायता करते हैं।
आज मन कुछ इन्हीं सब बातों में उलझा था मन बहलाने के लिए ब्लॉग खोली और सामने आपका ये पोष्ट आ गया
ReplyDeleteमन बिश्राम पा गया,सचमुच, भगवान किसी ना किसी माध्यम से अपनी बात हम तक पंहुचा ही देते हैं,सादर नमन आपको अनीता जी
हार्दिक स्वागत व आभार कामिनी जी, ईश्वर के ढंग वाक़ई निराले हैं
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